Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ३ उ. २ अनुकूलोपसर्गनिरूपणम् छाया-एसे संगा अनुष्याणां पाताला इवाऽताः ।
क्लीवा या लिश्यन्ति माति सगैश्चमूछिताः ॥१२॥ अन्वयार्थ:--(एए) एते पूर्वोक्ताः (संगा) सनामावृषितजनसंबन्धाः (मणुस्साण) मनुष्याणाम् (पायाला इव) पाताला इस समुद्रवत (अतारिमा) अतार्याः दुस्तराः (जत्थ) यत्र येषु संगेषु (नाइसंगे हिं) ज्ञातिसंगः (मुच्छिया) मूञ्छिता गृद्धिमावमुपागठा: (कीवा) क्लीवाः कातरा असमर्थाः (किस्संति) क्लिश्यति क्लेशमनुमति संसारान्तर्वत्तिनो भवन्तीति ॥१२॥
टीका--'एए संगा' एते पूर्वोक्ताः संगाः सज्यन्ते इति संगाः पितृमात. प्रभृतीनां मोहपाशपातकाः तात्कालिकाऽनुकूलदेदनीयाः संबन्धाः, नवीनको
शव्दार्थ-'एए-एते' यह पूर्वोक्त 'संगा-सङ्गा मातापिता स्वजन आदि का संबन्ध 'मणूलाण-मनुष्याणाम् अनुष्यों के लिए 'पायाला. इव-पाताला इच' समुद्र के समान 'अतारिमा-अता: दुस्तर है 'जत्थ-यन्त्र' जिस संग में 'नाइसंगहि-ज्ञानिलंगः' ज्ञातिसंसर्ग में 'मुच्छिया-मूच्छिताः' आसक्त हुए 'कीवा-क्लीवा' असमर्थ पुरुष किस्संति-क्लिश्यन्ति दुःखित होते हैं ॥१२॥ ' अन्वयार्थ--ये पूर्वोक्त संग अर्थात् मातापिता आदि स्वजनों के सम्बन्ध मनुष्यों के लिए समुद्र के समान दुस्तर हैं जिनमें स्वजने संसर्ग से मूर्छित हुए कायर जन क्लेश का अनुभव करते हैं या संसार में परिभ्रमण करते हैं॥१२॥ - टीकार्थ-ये पूर्वोक्त संग अर्थात् माता पिता आदि, स्वजनों के सम्बन्ध
शहाथ-- 'एए-श्ते' ! पूरित 'सगा-सगा.' भाता-पिता २१४न वगैरेन। समय 'मणूमाणं-मनुष्याणाम्' मनुष्याना माट 'पायाला इव-पाताला इच' समुद्रना अमान 'अतारिमा-अतार्या' स्तर छ. 'जत्थ-यत्र' 2 समा 'नोई संगेहि-ज्ञातिसंगै.' ज्ञातिस समय 'मुच्छिया-मूर्छिता' मासरत थये 'कीवाक्लीवाः' असमय ५३५ 'किस्संति क्लिश्यन्ति हुभी थाय छे. ।।१२।
સૂત્રાર્થ–માતા-પિતા આદિ સ્વજનોના સંબ ધરૂપ પૂર્વેતસ ગ માણસોને માટે સમુદ્રના સમાન દુસ્તર છે સ્વજનોના મેહમાં આસક્ત થયેલા મૂછલાવને કારણે તેમને સ સર્ગ નહી છેડી શકનારા-હાયર માણસે આ સંસારમાં પરિ. ભ્રમણ કર્યા જ કરે છે અને જન્મ, જરા અને મરણનાં દુઃખને અનુભવ કર્યા જ કરે છે ? ટીકા–આ પહેલાં કહેલ માતા-પિતા વિગેરે વજન સંબંધીજને મહા