Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सूत्रकृताङ्गसूत्र निव्वाण सेठ्ठा जह सवधम्मा,
__णे णायपुत्ता परमत्थि णाणी ॥२४॥ छाया-स्थितीनां श्रेष्ठा लसप्तमा वा समा सुधर्मा इव सभानां श्रेष्ठा।
निर्वाणश्रेष्ठा यथा सर्वधर्मा न ज्ञातपुत्रात् परोऽस्ति ज्ञानी ॥२४॥ अन्वयार्थः -'ठिईण' स्थितीनां-स्थितिमताम् 'लवसत्तमा' लवसप्तमा-पश्चानुत्तरविमानवासिन देवा इत्र 'सेट' श्रेष्ठा:-प्रधानाः 'समाण' समानां परिषदर्दा मध्ये 'सुहम्मा सभा सेट्ठा' सुधर्मा सभा सर्वतः श्रेष्ठा-प्रधाना यथा वा 'जहा' यथा
'ठिईण सेठ्ठा' इत्यादि ।
शब्दार्थ-ठिईग-स्थितीनां' जैसे स्थितिवालों में 'लवसत्तमालवसप्तमा:' पांच अनुत्तर विमानवाली देव 'सेट्ठा-श्रेष्ठाः' श्रेष्ठ है तथा 'सभाण-सभाना सब सभाओं में 'सुहम्मा सभा सेट्टा-सुधर्मा सभा श्रेष्ठा' सुधर्मा सभा सबसे श्रेष्ठ है एवं 'जहा-यथा' जैसे सव्व धम्मा-सर्वधर्म.' सब धर्मों में 'निवाण सेट्ठा-निर्वाण श्रेष्ठा.' जैसे मोक्ष श्रेष्ठ है इसी प्रकार ‘ण नायपुत्ता परमत्थि नाणी-न ज्ञातपुत्रात् परः अस्ति ज्ञानी' ज्ञातपुत्र भगवान महावीर स्वामी से कोई श्रेष्ठ ज्ञानवाला नहीं है ॥२४।।
अन्वयार्थ--जैसे स्थिति में अर्थात् स्थितिवालों में, लवसप्तम अर्थात् पाँच अनुत्तर विमानवाली देव श्रेष्ठ हैं, सब सभाओं में सुधर्मा .. — “ ठिईण सेढा " त्याह
ठिई-स्थितना' म , स्थितिवाणीमा 'सत्तमा-लबम प्रमाः' पाय अतुत्तर विमानवासी है। सेटा- श्रेष्ठः' श्रेष्ठ छ. तथा 'सभाणसभानां' 'धी सभासमा 'सुहम्मा सभ सेट्टा-सुधर्मासभा श्रेष्ठा' सुघमासमा सोथी श्रे४ छे. तेभर 'जहा-यथा' यथाभ 'सन्न धम्मा-सर्वधर्माः' मधा १ धीमा 'निव्वाणसेवा-निर्वाणयेष्ठाः' म मोक्ष श्रेष्ठ छ. मे प्रमाणे 'ण णायपुत्ता परमस्थि नाणी-न ज्ञातपुत्रात् परः अस्ति ज्ञानी' ज्ञातपुत्र भगवान् મહાવીર સ્વામીથી કેઈ પણ શ્રેષ્ઠ જ્ઞાનવાળુ નથી. એ ર૪ છે
સૂવા–જેમ સ્થિતિવાળા જીમાં લવ તમને—પાંચ અનુત્તર વિમાન વાસી દેને-બે ઠ માનવામાં આવે છે, જેમ સવળી સભાઓમાં સુધર્મા સભાને