Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सकताङ्गसूत्रे अन्वयार्थः-(मायिणो माया य कटु) मायिनः-परवञ्चकाः सायाश्च कृत्या (कामभोगे समारमे) कामभोगान् शब्दादिविधररूपान् समारभन्ते-कुर्वन्तिसेवन्ते,-तथा-(आयसायाणुगामिणो) आत्मसातानुगामिनः-स्ववीगसुख मिच्छन्तः (हंता) हन्तारः (छेत्ता) छेत्तारः (पगभित्ता) प्रकतथितारो भवन्तीति ॥५॥
टीक-'माइणो' मायिना, साया परवंचनात्मिका सा विद्यते येषां ते मायिना, 'माया' मयाः 'कटुं' कृत्वा-परधनवनितादिनम् अपहृत्य 'कामभोगे' 'मायिणो कट्टु' इत्यादि।
शब्दार्थ-'मारिणो माया य कटु-सायिनः मायाश्च कृत्या' माया करनेवाले पुरुष माया अर्थात् छल कपट करके 'काममोगे समारभेशासभोगान् समारभन्ते' झालोगों का सेवन करते हैं 'आयखाताणुगामिणो-आत्मसातानुगामिनः' तथा अपने सुखकी इच्छा करनेवाले वे 'हंता-हन्तार प्राणियों का हनन करनेवाले 'छेत्ता-छेत्तार' छेदन करनेवाले 'पगविभता-प्रकर्तयितार' और कर्तन करनेवाले होते हैं ॥५॥ . अन्वयार्थ लायावी लोग मायाचार करके शब्दादि विषयरूप कामभोगों का सेवन करते हैं । वे अपने सुख की इच्छा करते हुए जीवों का हनन करते हैं, छेड्न करते हैं और विदारण-वर्तन करते हैं ।।५।।
टीकार्थ-माया का सेवन करनेवाले मायी (कपटी) या मायावी कहलाते हैं। ऐसे मायावी जन माया करके पराये धन स्त्री- आदिका
'मायिणा कटु' त्याल
शहार्य -'मायिणो माया य कटु-मायिनः माया कृत्वा' भायाश्च ४२वावा ५३५ भाया अथातू छ५ ४५८ ४२२ 'कामभोगे सभारभे-कामभोगान् समारभन्ते' आभागानु सेवन ४२ छे. 'आयसाताणुगामिणो-आत्मशातानुगामिन' तथा पोताना सुमनी ४२७। ४२१॥ अव्य। 'हंता-हन्तारः' मालियान हनन ४२ mm 'छेत्ता-छेत्तारः' छेदन ४२वावा 'पगम्भिता-प्रकर्तयितारः' અને કર્તન કરવા વાળા હોય છે. પાન - - અવયાર્થ–માયાવી લોકે માયાચાર કરીને શબ્દાદિ વિષય રૂપ કામભેગોનું સેવન કરે છે તેઓ પિતાના સુખની ઇચ્છા કરીને અન્ય જીવોની हिंसा ४२ छे, छेदन ४२ छ, भने विहार-त्तन ४३ छे. ॥१॥ . . सा-भायानु सेवन ४२वापामा भाथी (४५टी) अथवा मायावी કહેવાય છે. એવા માયાવી. માણસે માયા કરીને પારકા ધન સ્ત્રી વિગેરેનું