Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 680
________________ . . . . . . . . . सूत्रकृताङ्गसूत्रे (शलाणं तु) इत्पत्र तु शब्देन प्रमाइवतां वीर्यपि संगृहीतम् । 'इत्तो' अतःपरम् 'पंडियाणं' पण्डितानाम् 'कम्पपीरियं' अकर्मवीर्यम् 'मे' मम कययतः 'सुणे' शृणुत यूयमिति शेषः । एतावता प्रबन्धेन वालानां जीवावां सकर्मवीर्य प्रदर्शितम् , अतःपरं पण्डितानामकर्मवीर्यं कथयामि, तद्भवन्तः शृण्वन्तु इति ।९। ___ उक्तं वालवीर्य साम्य पण्डितवीर्यपाह-'दयिए' इत्यादि। मूलम्-दविए बंधणुस्सुक्के सव्वओ छिन्नपंधणे। पणोल्ल पावकं केलं लहलं कंतति अंतलो॥१०॥ छाया-द्रव्यो बन्धनोन्मुक्तः सर्वतश्छिन्नवन्धनः। प्रणुध पापकं कर शल्य कृन्तत्यनेकशः ॥१०॥ कहा गया है। मूल में आये हुए 'बालाणं तु में 'तु' शब्द से प्रमाद्वान् जीवों के वीर्य का भी संग्रह किया गया है। बालवीर्य के प्ररूपण के पश्चात् मैं पण्डितों का अकर्मवीर्य कहूँगा, उसे तुम सब सुनो ॥९॥ अव पण्डितवीर्य क्षा करन करते हैं-'दविए' इत्यादि। शब्दार्थ--'दिए-द्रव्यः' मुक्ति जाने योग्य पुरुष 'बंधणुम्मुक्केपन्धनोन्मुक्तः' बन्धनसे मुक्त ' सओ छिन्नबंधणे- सर्वतश्छिन्नबंधन:' तथा सब प्रकारसे चन्धनको नष्ट करता हुआ पायक कम्यं पणोल्लपापकं कर्म प्रणुद्य' पापकर्मको छोडकर 'अंततो सल्लं कंतति-अंतशः शल्यं कृन्तति' अपने समस्तकों को नष्ट कर देता है ॥१०॥ . . । भूभा मास 'बालाणां तु' मा ५४मा 'तु' ५४थी प्रभावान्, वाना વીર્યને પણ સંગ્રહ થયેલ છે. - બાલવીર્યનું નિરૂપણ કરીને હવે હું પંડિતોના અકર્મવીર્ય વિશે કહીશ તે તમે સાંભળો ! - वे 'दव्विा' या गाथा २१ परितवायर्नु थन ४२वामा आवे छे. शहाथ-दब्धिए-द्रव्य ' भुति गमन २वान योग्य ५३५ 'बंधणुम्मुक्केबंधनोन्मुक्तः' मनथी मुन्त 'सदओ छिन्नबंधणे-सर्वतश्छिन्नबंधनः' तथा अधाशते मधननानाश शने 'पावकं कम्मं पणोल्ल-पाप कर्म प्रणुद्य' पा५भने छाडी 'अंतसो बल्ल कंतति-अन्तश शल्य कृन्तति' पाताना 'सघणा કમેને નાશ કરી દે છે. ૧૦ |

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