Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 678
________________ . सुत्रकृतासूत्रे पापकर्माऽनुष्ठातारः चतुर्गतिभ्रमणहेतुकं साम्परायिकं कर्म बन्नन्ति, तथा-राग द्वेषापायकलुपितान्तःकरणाः कुर्वन्ति-अनेकविधं कर्म इतिभावः ॥८॥ तदेव बालवीर्यमुपदर्थ तदुपसहरन्ना-'एयं' इत्यादि । मूलम्-एवं कम्मवीरियं बालाणं तु वेड्यं । ' इत्ती आक्रम्सवारियं पंडियाणं सुंणेह में ॥९॥ .. छाया- एतत्सकर्मवीर्य वालानां तु मवेदितम् ।। ___ अतोऽकर्मवीर्य पण्डितानां शृणुत मे ॥९॥ प्रकार के अलाता रूप दुःख को उत्पन्न करने वाले होते हैं। सत् के विवेक से रहित अज्ञानी जीव ही ऐसे कर्म उपार्जन करते हैं। . . तात्पर्य यह है कि स्वयं पाप कर्म का अनुष्ठान करने वाले अज्ञानी जीव चतुर्गति में भ्रमण करने के कारण साम्पराधिक कर्म का बन्ध करते हैं तथा जो राग द्वेष से कलुषित हैं, वे अनेक प्रकार के कर्म उपार्जन करते हैं ॥८॥ -- ----- इस प्रकार बालवीर्य को दिखला कर उपसंहार करते हैं- . 'एयं सम्मवीरियं' इत्यादि। - शब्दार्थ-'एयं-एतत्' यह 'बालाणं तु-बालानां तु अज्ञानियों का 'सकम्मवीरियं पवेड्यं-सकर्मवीर्य प्रवेदितम्' स्वर्सवीर्य कहागया है.. 'इत्तो-अत:' अब यहां से 'पंडियाण-पंडितानाम्' उत्तम साधुओं का 'अकम्नवीरिय-अकर्मवीर्यम्' अकर्मवीर्य- 'मे-मे' मेरेसे 'सुणेह-शृणुन' हे शिष्यो सुनो.॥९॥ अरनी 'मशता (मशांति) ३५ मने Eपन्न ४२वावा डाय छे. सत्.. અસના વિવેક વિનાના અજ્ઞાની જીવોજ એવા કર્મોનું ઉપાર્જન કરે છે. . ' કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે–પિત–પાપકર્મનું અનુષ્ઠાન કરવાવાળા અજ્ઞાની જીવ ચતુર્ગતિમાં ભ્રમણ કરવાને કારણે સાંપરાયિક કમને બંધ કરે છે તથા જેઓ રાગદ્વેષથી મલીન થયેલા છે. તેઓ અનેક પ્રકારના भानु पान (प्राप्ति) ४२ छे.. . . . ...मा शत. भासवाय २ मतावान ६५स डा२ ४२di 33 छ, ४-, 'एय .सकम्मवीरिय” त्याहि . शाय:--:एय-एतत्' भी 'बालाणं तु-बालानां तु अज्ञानिया नुसकम्म वीरिय पवेइय-संकर्मवीर्यम् प्रवेदितम्' २१४ पीय 3. छ. 'इत्तो-अतः', थी पंडियाणं-पंडितानाम्' उत्तम साधुनु' 'अकम्मवीरियं-अकर्मवीर्यम्' . अभिवाय 'मे-मे मारी पासेकी 'सुणेह-श्रुणुतं' शिष्य ! तमे सोमinen

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