Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 694
________________ ६८० सूत्रकृतासूत्रे छाया-सह सन्मत्या ज्ञात्वा धर्मसारं शुन्या वा। समुपस्थित रत्वनगारः प्रत्यारूपात्पाएकः ॥११॥ अश्यार्थ:--'सहसमईए' सह सन्मत्या-स्वाभाविकरबुद्धया 'धम्मसारं' धर्मसारं-धर्मस्य श्रुनदारित्राख्यस्य सारं-तत्वम् (गचा) ज्ञात्या-अबुध्य इला पुत्रवत् , एवम्-(रणेत्तु वा) श्रुया वा-चिलाती पुत्रवत् शुन्या (समुट्ठिए अणगारे) समुपस्थितः-उत्तरोत्तरगुणसंपत्तये समुपस्थितोऽनगारः प्रबई मानपरिणाम: (पच्चकखायपावए) प्रत्याख्यातपापकः-निराकृतसावधानुष्ठानो भवतीति ॥१४॥ ___टीका--दोपाऽझलकित धर्मस्य ज्ञानं यथा भवति तदेवाह मूत्रकारः-'सह संमईए) इत्यादि । (सह संमई) सह सन्मत्या-सह-आत्मना सह वर्तते या 'सह सनईए' इत्यादि। शब्दार्थ-'सह संमईए-सह सन्मस्या' अच्छी बुद्धि के द्वारा 'सुणेत्तु वा-झुत्वा बा' अथवा सुनकर 'धमलारं-धर्मसार धर्म के सच्चे स्वरूपको 'जच्चा-ज्ञाश' जानकार 'सानुवहिए उ अणगारे-समुपस्थितस्त्वनगारः' आत्माको उन्नती करने में तत्पर साधु 'पञ्चक्खायपायए-प्रत्याख्यातापक' पापका प्रत्याख्यान करके निर्सल आत्मावाला होता है ॥१४॥ . ' अन्याय-अपनी स्वाभाधिक निर्मल बुद्धि से इलापुत्र के समान धर्मत्वको जान कर तथा शर्मसार-श्रुतचारित्र रूप सारको चिलाती पुत्र के सामान श्रवण करके ज्ञान और क्रिया की. उत्तरोत्तर प्राप्ति के लिए उद्यत अननाद सापद्य अनुष्ठान का त्याग करे ॥१४॥ - सहसंमईए' शा--'सह संमईए-सइ सन्मत्या' सारी मुद्धि द्वारा 'सुणेत्तु वाश्रुत्वा वा मय! समजा 'धम्मसारं-धर्मसारम्' घना, साया २५३पने 'जच्चा-ज्ञात्वा' oneीन 'समुट्टिएउ अणगारे-समुपस्थितस्त्वनगारः' मामानी तती ४२वामां तत्पर सेवा साधु 'पच्चखायपावए-प्रत्याख्यातपापकः' पायर्नु પ્રત્યાખ્યાન કરીને નિર્મળ આત્માવાળે થાય છે. ૧૪ * અવયાર્થ–પિતાની સ્વાભાવિક નિર્મલ બુદ્ધિથી ઈલા પુત્રની જેમ ધવને જાણુને અથવા ધસાર-શ્રુતચારિત્રરૂપસારને ચિલાતી પુત્ર પ્રમાણે શ્રવણ કરીને જ્ઞાન અને ક્રિયાની ઉત્તરોત્તર પ્રાપ્તિ માટે પ્રયત્નવાળા અનગારે સાવધ અનુષ્ઠાનને ત્યાગ કરે. ૧૪ ટીકર્થ–- નિષ ધર્મનું જ્ઞાન જે ઉપથી થાય છે, તેનું કથન હવે

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