Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 696
________________ सूत्रकृताङ्गसूत्रे शात्वा गुरूपदेशादिना सत्यधर्मस्वरूप श्रुत्वा, ज्ञानादिगुणोपार्जने संलग्नः पापंपरित्यज्य विमलामा भवति साधुरिति ॥१४॥ मूलम्ज दि.चुदक्कम जाण आउखेलस्ल अपणो। तस्लेव अंतरी खिप्पं लिंक सिखेन पंडिए ॥१५॥ छाया-यं कंचिदुपकर जानीयाद् आयु. क्षेमस्य आत्मनः । __तस्यैवान्तरा क्षिनं शिक्षा शिक्षेत पण्डितः ॥१५॥ अन्वयार्थ:--(अपणो आउखेमस्ल) आसन:-स्त्रस्यायुःक्षेमस्य-स्वायुषः (जं किंचुवामं जाणे) यत् किञ्चिपक्रम जानीयात्-स्वायुः क्षयकालं ज्ञात्वा ...(तस्सेत्र अंतरा) तस्यै वान्तरा-तन्मध्ये एक (खिप्पं) लिप-शीबम् (पण्डिए) पण्डितः परिणामों से मुनि मोक्षमार्ग में उपस्थित हो। वह समस्त प्राणातिपात __आदि पापों का त्यागी हो। । आशय यह है कि साधु अपनी ही निर्मल बुद्धि से अथवा गुरु : आदि के उपदेश से सत्य धर्म के स्वरूप को जानकार, ज्ञानादि गुणों , के उपार्जन में तत्पर और पापोंक्षा परित्याग करके निर्मल होता है ॥१४॥ , , 'जं किंचुवकर्म जाणे' इत्यादि। - शब्दार्थ-'अपणो आउखेमरस-आत्मनः आयुः क्षेमध्य विद्वान , पुरुष अपनी आयुका ' जचुवामं जाणे-धत् किंचित् उपक्रम जानीयात्' क्षयकाल यदि जाने तो 'तरले अंरा-तस्यैत्र अन्तरा' उसके अंदर ही खिप्पं-क्षिप्र-शीच 'पंडिए-पण्डितः' विहान् मुनि लिक्ख-शिक्षा' संलेखनारूप शिक्षा लिक्खेजर-शिक्षेन' ग्रहण करे ॥१५॥ ... अन्वयार्थ-ज्ञानवान् पुनम अपनी आयु का कोई उपक्रम आयु કહેવાનો આશય એ છે કે સાધુ પિતાની જ નિમલ બુદ્ધિ વડે અથવા ' ગુરૂ વિગેરેના ઉપદેશથી સત્ય ધર્મના સ્વરૂપને જાણીને જ્ઞાન વિગેરે ગુણોના - ઉપાર્જનમાં તત્પર રહીને તથા પાપનો ત્યાગ કરીને નિર્મળ બની જાય છે. ૧૪ जे किचुवकम जाणे' या ::'शहाथ----अप्पणी शाउक्खयस्स-आत्मन' आयु क्षयस्य' विहान् युष पाताना मायुष्यन। 'ज किचुपकम जाणे-यत् किंचित् उपक्रम जानीयात्' क्षयजाद ने ___ong तो 'तस्सेव अंतरा-तस्यैव अन्तरा' तेनी ५४२ २४ 'खिप्पं-क्षिप्र' हीथी । 'पंडिए-पण्डितः' पति मुनि सिक्ख-शिक्षा' सोमना'३५ शिक्षाने "सिक्खेज्जा-शिक्षेव' अक्षय १२. Mill .. मापयाथ-सानवान, ५३५ पोताना आयुष्यने ५४ है

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