Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सूत्रकृतागसूत्रे सह निष्टलापधेत। चिोदास्तानं ब्रह्मचारिणां दोपाधायकमेव। तथाचोक्तम्
स्नानं मदर्पकरं कामांगं प्रथमं स्मृतम् ।
तस्मात्कामं परित्यज्य न ते स्नान्ति दमे रताः ॥१॥ - भपिचोदा मिलन गानो हि स्नात इत्यभिधीयते ।
स स्नातो यो व्रतस्नातः स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥२॥ स्नानं कामोद्दीपकं प्रथमं कामांगं कथितं तस्मात् दमे रताः जितेन्द्रिया: कामं परित्यज्य जले स्नानं नाचरन्ति ॥१॥
जले स्नातो नरो न स्नात इति कथ्यते किन्तु संयमात्मत्रते स्नानं करोति चारित्रवान् भवति बाह्याभ्यन्तरः स स्नात इति कथ्यते इति भावः ॥१४॥ जाएगा! यह महान् अनिष्ट की प्राप्ति होगी। इसके सिवाय ब्रह्मचारियों के लिए जलस्नान दोष जनक ही है। कहा भी है--स्नानं मददर्पकरम्' इत्यादि। ____ 'स्नान मद एवं दर्द की वृद्धि करने वाला है और काम के अंगों में प्रथम अंग माना गया है। अतएव काम के त्यागी संयमी पुरुष स्नान नहीं करते। : - और भी कहा है-'नोदकक्लिन्नगात्रोहि' इत्यादि।
__ 'जल से शरीर को गिला कर लेने वाला स्नात (नहाया हुआ) • नहीं कहलाता । वास्तव में स्नात वह है जो व्रतों से स्नात है अर्थात् : अहिंसा आदि व्रतों का धारक है। व्रतस्नात पुरुष भीतर और बाहर
से शुचि होता है अर्थात् शौच के लिए उसे जलस्नान की आवश्यकता नहीं होती ॥१४॥ . વળી બ્રહ્મચારીઓને માટે જલસ્તાન દેષજનક જ છે. કહ્યું પણ છે है-'स्नान मददर्पकरम्' त्याह
___स्नान भई भने ६५ (मा२)नी वृद्धि ४२॥२ छ. मिना भगामा 'स्नानने प्रथम ३५ छे. तेथी . मन (भैथुनन।) त्या :४२नार 'सयभी पुरुष स्नान ४२ता नथी । मेवु ५९५ ४यु छ ४-मादकक्लिन्नगानोहि त्याहि
પાણી વડે શરીરને ભીનું કરનાર માણસને નાત (નહાયેલે) કહેવાતે. નથી. વાસ્તવમાં સ્નાત તે તેને જ કહેવાય છે કે જે વ્રતથી નાત હોય, એટલે કે અહિંસા આદિ વ્રતનું પાલન કરનારને જ સ્નાત કહેવાય છે. વ્રતસ્નાત પુરુષ બહારથી અને અંદરથી વિશુદ્ધ હોય છે એટલે વિશદ્ધિને માટે તેને જલસ્તાનની આવશ્યક્તા જ રહેતી નથી કે ૧૪ | - -