Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सूत्रकृतानसूत्रे - अन्वयार्थ:--(अरहंतभासिय) अर्हद्रापितं-तीर्थकरप्रतिपादितम् (समाहिय)
" समाहित-युक्तियुक्तम् (अठ्ठपोवसुद्धं) अर्थपदोपशुद्धम्-अर्थैः पर्दैश्च निर्दोषम् (धम्मं सोचा) धर्म-श्रुतचारित्रलक्षणं श्रुत्वा (तं सदहाणा) तं-धरमईदापितं श्रद्दधाना:-तत्र श्रद्धां कुर्वन्तः (जगा) जनाः-लोकाः (अणाऊ) अनायुषः-अपगतायुःकर्मागः सन्तः मोक्ष प्राप्नुवन्ति,-अथवा-(इंदा च) इन्द्रा इव (देवाहिव) देवाधिपाः-देवस्वामिनः (आगमिस्संति) आगमिष्यन्ति-सविष्यन्तीति ॥२९॥ ___टीका--'अरहतमासियं' अर्हद्भापितम् 'समाहिय' समाहितम् युक्तियुक्तम् 'अट्ठपओवसुद्ध' अर्थपदोपशुद्धस्, अर्थ:-प्रतिपाद्याभिधेयैः पदेस्तवाचकशब्दैः उपपदोपशुद्धं'- अर्थ और पदों से युक्त 'धरम लोच्चा-धर्म श्रुत्वा धर्म को सुनकर 'तं लहाणा-तं श्रद्दधानाः उसमें श्रद्धा रखने वाले 'जणाजनाः' मनुष्य 'अणाउ-अनायुषः' मोक्षको प्राप्त करते हैं अथवा 'इंदाय इन्द्र इव' वे इन्द्र के जैले 'देवाहिव-देवाधिपाः' देवताओं के अधिपति
आगमिस्संति-आगमिष्यन्ति' होते हैं ॥२९॥ ... अन्वयार्थ-अरिहन्त के द्वारा प्ररूपित, युक्तियुक्त, अर्थ और
शब्द दोनों दृष्टियों से निर्दोष धर्म को श्रवण करके, उस पर जो श्रद्धा करते हैं, वे अन्य जन आयुकर्म से रहित हो कर मुक्तिकाभ कर लेते हैं अथवा इन्द्र के समान देवों के अधिपति होते हैं ॥२९॥ ____टोकार्थ--सर्वज्ञ सर्वदर्शी अरिहन्त भगवन्त द्वारा भाषित युक्ति संगत तथा भाव और भाषा अर्थात् वाच्य और वाचक या अर्थ एवं शब्द दोनों ही दृष्टियों से सर्वथा निर्दोष श्रुतचारित्र रूप धर्म को सन
ग म भने पोथी युटत 'धम्म सोच्चा-धर्म श्रुत्वा' धमन सiesta. - सहहाणा-तं अंदाधानाः' मा श्रद्धा रामपापा 'जणा-जनाः मनुष्य
अगोन-अनायपः' मोक्ष प्राप्त ४२ छे अथवा 'इंदाव-इन्द्र इव' तेस। छन्द्र नरेभ देवाहिव-देवाधिप:' हेवताना मधिपति 'आगमिस्संति-आगमियन्ति' थाय छ. ॥ २८ ॥ * સૂત્રાર્થ—અરિહન્ત ભગવાન દ્વારા પ્રરૂપિત, યુક્તિયુક્ત, અર્થ અને શબ્દ અને દષ્ટિએ નિર્દોષ ધર્મનું શ્રવણ કરીને, તેના ઉપર જે શ્રદ્ધા રાખે છે, તે ભવ્ય-જી આયુકમથી રહિત થઈને મુક્તિ પ્રાપ્ત કરી શકે છે, અથવા
ના અધિપતિ ઈન્દ્રની પદવી તો અવશ્ય પ્રાપ્ત કરે છે. પર - ટીકાર્થ-સર્વજ્ઞ, સર્વદશી અરિહન્ત ભગવન્ત દ્વારા ભાષિત, ચુક્તિસંગતિસંથા ભાવ અને ભાષા–એટલે કે વાચ્ય અને વાચક અથવા અર્થ અને