Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सूत्रकृतामसू , अस्वयार्थः- (भाइ मिज्जति) गर्भ नियन्ते हरितवनस्पतिछेइकाः (बुया वुयाणा) ब्रुवन्तोऽत्रुवन्तश्च-व्यक्तवाचोऽव्यक्तवाचश्च म्रिक्षन्ते (परे णरा) परे नराः 'तयाऽन्ये-पुरुषाः (पंचसिहा कुमारा) पंचशि वाः कुमारा:-कुमारावस्थायामेव
'गभाई मिति' इत्यादि।
शब्दार्थ--'भाइ लिजलि-गर्भे नियते' हरी वनस्पतिका छेदन करने वाला जीव गर्भ में ही मर जाता है 'वुयात्रुयाणा-ब्रुवन्तोऽब्रुवन्तश्च' तथा कोई स्पष्ट बोलने की अवस्था में और कोई अस्पष्ट बोलाने की अवस्था में ही परजाते है परे णा-परे नरा' तथा दूसरे पुरुष पंचसिहाँ कुमारा-पंच शिखाः कुमारा' पांच शिखाशले कुमार अवस्था में ही मरजाते हैं 'जुधामणा ज्झिम थेरवाय-युवानः मध्यमाः स्थविरश्च' कोई युवान होकर तथा कोई आधी उमर वाला होकर एवं कोई वृद्ध होकर मरजाते है 'आउक्खए पलीणा ते चयंति-आयुः क्षये प्रलीनाः ते त्यति' इस प्रकार वीज आदि का नाश करने वाले प्राणी सभी अवस्थाओं में आयु क्षीण होने पर अपने शरीर को छोड़ देते हैं ॥१०॥ - अन्वयार्थ जो पुरुष वनस्पतिक्षाय की विराधना करते हैं, उनमें से कोई परभव में गर्भ में ही मर जाते हैं, कोई स्पष्ट बोलने की अवस्था ___ 'गभाई मिजंति' त्याहि
शण्डागभाइ भिजति-गर्भ नियन्वे' हीतरी वनस्पतिनु छेहन. ४२वापामा ८१ मा १ भरी नय छे. 'बुया वुयाणा-ब्रुवन्तोऽब्रुवन्तश्च' તથા કેઈ સ્પષ્ટ બેલવાની અવસ્થામાં અને કેઈ અસ્પષ્ટ બોલવાની આવ.स्थामा भरी तय छे. 'परे णरा-परे नराः', तथा मीन १३॥ "पंचसिहा फुमारा-पंचशिखाः सुमारा:' पांय. शिमा-मर्थात माय अवस्थामा भरी तय छे. 'जुवाणगा मज्झिमधेरगा य-युवानः- मध्यमाः स्थविराध' ४ યુવાન થઈને તથા કેઈ અધેિ ઉમરવાળા થઈને અને કઈ વૃદ્ધ બનીને भरी लय छे. 'आउख्ये पलीणा ते चयंति-आयुःक्षये प्रलीनाः ते त्यजन्ति' २॥ રીતે બી વિગેરેને નાશ કરવાવાળા પ્રાણુ બધી જ અવસ્થાઓમાં આયુષ્ય ક્ષીણ થાય ત્યારે પિતાના શરીરને છોડી દે છે. ૧૦
સૂત્રાર્થ–જે પુરુષે વનસ્પતિકાયની વિરાધના કરે છે, તેમાંથી કઈ પરભવમાં ગર્ભમાં જ મરી જાય છે, કેઈ તતડું બોલવાની અવસ્થામાં મરી