Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समयाथवाधिना टाका प्र. शु. म. ७ ७. ६ कुशालपता दापानपणम् १८९ ... छाया-संबुध्यध्वं जंतवो मनुष्यत्वं दृष्ट्वा भयं वालिशेनालभ्यः। ..:
एकान्तदुःखो चरित इव लोकः स्वकर्मणा विपर्यासमुपैति ॥११॥ -, अन्वयार्थः - (जनबो) हे जन्तवः हे पाणिनः (माणुसत्तं) मनुष्यत्व-मनुजभवं दुर्लभ . (संवुझहा) संयुध्यध्वं-जानीत (भयं दटट्ठ) भयं तिर्यगादिभवसंबंधि दुःखं दृष्ट्वा (वालिसेणं अलंभो) वालिशेन विवेकरहितपुरुषेण अलभ्या उत्तमविवेको न लभ्यते इत्यपि जानीत (लोए) अयं लोकः (जरिए व) ज्वरित इव (एगंतदुक्खे)
'संवुज्झहा जंतवो' इत्यादि।
शब्दार्थ-'जंतवो-जंतवः' हे जीवों 'माणुसत्तं-अनुष्यत्वं' मनुष्य भव की दुर्लभताको 'संवुज्झहा-संवुध्यध्वं' समझलो 'भयं दट्टु-भयं दृष्ट्वा भय को अर्थात् नरक तथा तिर्यंच आदि योनि के भय को देखकर ''यालिसेणं 'अलंभो-पालिशेनालभ्यः' विवेकहीन पुरुष को उत्तम विवे. कका अलाभ जानकर बोध प्राप्त करो 'लोए-लोकः' यह लोक 'जरिए वज्वरित इव' जबर से पीडित के जैसा 'एगंतदुखे-कान्तदुःखी' सब प्रकार से दुःखी है 'लकम्मुगा विपरिचासुवेइ-स्वकर्मणा विपर्यासमुपैती' यह अपने कर्मसे सुख को चाहता हुआ दुःख को ही प्राप्त करता है ॥११॥
अवधार्थ-हे जीवो! मनुष्यभव दुर्लभ है, इस तथ्य को समझो। यह भी समझलो कि अज्ञानी जनों को विवेक की प्राप्ति नहीं होती। तिर्यच आदि भवों संबंधी भय दुःख को देख कर यह समझो कि यह लोक ज्वरग्रस्त की भाँति एकान्त रूप से दुःखी हो रहा है। वह अपने
'सबुझहा जंतवा' त्याहAvat:-जंतवो-जंतवः' वे 'मणुस्सत्त-मनुष्यत्वं' मनुष्यसपना
ताने 'संधुज्ज्ञहा संबुध्यध्वम्' समलो भय -भय दृष्ट्वा ' अयन मर्थात् न२४ तथा तियय विगेरे यानीना सय ४२ 'बालिसेणं अलंभोबालिशेनालभ्य' वि विनाना ५३५२ उत्तम विना माल सभने माघ प्रात ४२। 'लोए-लोक' मा ४ 'जरिएव-ज्वरित इव' ताथी पी पामेमानाम 'एगंतदुक्खे-एकान्तदुःरनी' मधी शत हुमी छे. 'सकम्मुणा विपरियासवेइ-स्त्रकर्मणा विपर्यासमुपैति' मा पाताना माथा सुमने -२छता था દુ:ખને જ પ્રાપ્ત કરે છે. ૧૧
સૂત્રાર્થ –હે જીવો ! મનુષ્યભવ દુર્લભ છે, આ તથ્યને સમજે. વળી એ વાત પણ સમજી લે કે અજ્ઞાની જનેને 'વિવેકની પ્રાપ્તિ થતી નથી. તિર્યંચ આદિ ના ભય તથા દુખેને જોઈને એટલું તો સમજી લો કે આ લોક જવરમાં જકડાયેલાની જેમ એકાન્ત રૂપે દુઃખને અનુભવ કરી રહ્યો