Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुत्रकृतासूत्रे (देवाहिवई) देवाधिपतिः। (जुइम) द्यतिमान् , यथा शक्रो युतिमान्-देवानामधिपतिः, तथा-भगवानपि द्युतिमान् देवाधिपतिरस्ति ॥मू०८॥ मूलम्-'ले वीरिएणं पडिपुन्नबीरिए, सुदंसणे वा णगसब सेटे।
सुरालए वालि मुदागरे से विरायए गगुणोववेए॥९॥ छाया-स वीर्येण प्रतिपूर्णवीर्यः सुदर्शन इव नगसर्वश्रेष्ठः ।
मुरालयो वासिमुदाकरः स विराजतेऽनेकगुणोपपेतः ॥९॥ अन्वयार्थ-(से) स भगवान् वर्द्धमानस्वामी (वीरिएणं) वीर्येण-आत्मवलेन (पडिपुन्नवीरिए) प्रतिपूर्णीयः-वीर्यान्तरायस्य क्षयात् (सुदंसणे वा) सुदर्शन इव निरवद्य भिक्षामात्र से जीवन निर्वाह करनेवाले होने से भिक्षु कहलाते हैं, 'सक्केव देवाहिवई जुहमं' जिसप्रकार देवों का अधिपति शक्रेन्द्र धुतिमान है उसी प्रकार भगवान् भी द्युतिमान और देवाधिदेव हैं ।।८॥ 'से वीरिएण' इत्यादि।
शब्दार्थ-'से-सः वह भगवान महावीर स्वामी 'पीरिएणं-वीर्यण' आत्मबल से 'पडिपुण्णवीरिए-प्रतिपूर्णवीया, पूर्ण वीर्यवाले हैं 'सुदंसणेवा-सुदर्शन इच' जिस प्रकार पर्वतों में सुमेरु 'णगलव्वसेढे-नगसर्वश्रेष्ठः' सब पर्वतों में श्रेष्ठ है 'सुरालए-खरालये' देवलोक में 'वाशिमुदागरेवासिनुदाकरः लिवास करनेवालों को हर्ष उत्पन्न करनेवाले णेगगुणोववेए-अनेकगुणोपपेतः' अनेक गुणों से युक्त होकर 'विरायए-विरा. जते' विराजमान होते हैं अर्थात् प्रकाशित होते हैं ॥९॥ साथी वन निवड ४२वा वाथी लिनु उपाय छे. 'सक्लेव देवाहिपई जुइम' २भ हेवान। अधिपति शन्द्र धुतिमान् छ. मेरा प्रमाणे सा. વાનું પણ ધુતિમાન અને દેવાધિદેવ છે. . ૮ _ 'से वीरिएणं' त्या
साथ-से-स' त लगवान् महावी२२३॥भी 'वीरिएणं-वीर्येण' सामयी 'पडिपुण्णवीरिए-प्रतिपूर्णवीर्य:' पूर्ण वीया छे. 'सुदसणे वाप्रदर्शन इव' तसा पतामा सुभे३ ‘णगसबसेढे-नगसर्वश्रेष्ठः' मा ५ तामा श्रे 'सुरालए-सुरालये' हेपसभा 'वासिमुदागरे-वासिमुदाकर' निवास ४२वावामान वर्ष Guru ४२वावाणा ‘णेगगुणोत्रवेए-अनेकगुगोपपे तः' भने
थी युत थन 'विरायए-विराजते' विमान थाय छे. अर्थात .., प्रशित थाय छे. ॥६॥