Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समयाथबााधना टाक
का प्र. श्रु. अ. ६ उ.१ भगवतो महावीरस्य गुणवर्णनम् ५२३ छाया-दानान"" दमनो नामा । स च कदाचित् चतुहिपी समुपेतः मासाद
ऽत्मानं विनोदयस्तिष्ठति स्म । तेन राज्ञा कदाचिव चौरो
मुण्डमालो रक्ताऽम्बरपरिधानो पाणदानं (से8) श्रेष्ठ
रक्तचन्दनोपलिप्ताङ्गः रुपैः- राजमार्गेण नीयमानः सपत्नीकेन दृष्टः । संहताभि वधं-परपीडाऽनुत्पादकं वाय तपस्स मध्ये (बंभचेर उत्तम)
* कृतमनेन, यदर्थं यस्येदृशी अवस्था लोकैश्च कापि
' गपितम् यदयं परद्रव्याऽपहरणमकरोत् । नीतिप्रधानं तथैव (समणे) श्रमणः (नायपुर त्तमः-त्रिलोकेयूत्तमः ॥२३॥
को निर्णीतः । अतो मारणाय नीयते वध्य'दाणाण सेटुं' इत्यादि। मन नामका राजा था। एक चार
शब्दार्थ-दाणाण-दानानां सब रहल के झरोखे में क्रीडा करता -अभयप्रदानम्' अभयदान 'से,-श्रेष्ठसया के साथ राजा की दृष्टि एक सत्यवचनों में प्रणय-अनव' के पुष्पा का माला पड़ी थी. ऐसा सस्य श्रेष्ठ है ऐसा 'वयंति-वदन्तिचन्दन से उसका शरीर लिप्त तपों में 'यंभचेरं उत्तम-ब्रह्मचर्यम् उत्तमम्' न काडुगडुगा बजाई जा रही है इसी प्रकार 'समणो-श्रमणः' इस लोकल जा रहे थे। . पुत्ते-ज्ञातपुत्रः' ज्ञात पुत्र वर्द्धमान स्वामी 'लो इसने क्या दुष्कर्म किया उत्तम नाम श्रेष्ठ है ॥२३॥
"' और राजपुरुष इसे कहाँ -अन्वयार्थ-जैले ममस्त दानों में अ वाक्यों में अनवद्य अर्थात् जो परपीडाजनक नद्रव्य का अपहरण किया श्रेष्ठ है और तपों में नववाड़ युक्त ब्रह्मचयथा सूत्रा२ मे २६५ श्रमण ज्ञातपुत्र वद्धमान महावीर स्वामी तीना तयार नामा , 'दाणाणं से,
હતો એક દિવસ તે પિતાની शहाथ-'दाणाणं-दानानां' या ना नामोटो मेठी पातविना श नम्' समयहान 'सेटुं-श्रेष्ठम्' उत्तम छ 'सच्चेसु-मे मन्विान योर ५२ 'अणवज्ज-अनवद्यम्' नाथी छन ५६ पाउन थाय भाका हती. तो खान प्रभा 'वयंति-वदन्ति' छे. 'तवेसु-तपस्सु' तपामा १२ पास यहनना बेप उत्तमम्' नपटियुत आयु ब्रह्म यय श्रेष्ठ छे. मे । आभा श्र
वान् 'नायपुत्ते-ज्ञातपुत्रः' ज्ञात
ज्ञातपुत्र सात ता. 'लोगुत्तमे-लोकोत्तमः' माथी उत्तम मात् श्रे४ छ । સૂત્રાર્થ-જેમ સમસ્ત દાનમાં અભયદાન શ્રેષ્ઠ છે,
वीन पूछयुઅનવદ્ય, એટલે કે કેઈ ને માટે પીડાજનક ન. હોય છે તેના આ પ્રકારની શ્રેષ્ઠ છે, એ જ પ્રમાણે શ્રમણ જ્ઞાતપુત્ર વર્ધમાન ત્રણે લોકમાં सु० ६६
1નું અપહરણ કર્યું છે,