Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समयार्थबोधिनी टीका प्र.शु. अ. ६ उ.१-भगवतो महावीरस्य गुणवर्णनम् ११ मूलम्-से पव्वए समहप्पगासे विरायती कंचणमहवन्ने।
अणुत्तरे गिरिसु य पवदुग्गे गिरिवरे से जेलिए व भीमे॥१२॥ .. छाया--स पर्वतः शब्दमहाप्रकाशो विराजते काञ्चनमृष्टवर्णः ।
अनुत्तरो गिरिषु च पर्वदुर्गों गिरिवरः स ज्वलित इव भौमः ॥१२॥ अन्वयार्थः-(से पचए) स पर्वतो मेरुः (सदमहयगासे) शब्दमहाप्रकाश:शब्दै महान् प्रकाश:-प्रसिद्धि यस्य सः (कंचणमट्ठन्ने) काश्चनमृष्टवर्ण:-घर्षित सुवर्णवद्वणवान् (अणुत्तरे) अनुत्तरः-सर्वप्रधानः (विरायती) विराजते-शोभते, (गिरिमु य पव्वदुग्गे) गिरिषु च पर्वदुर्गः- पर्वभि मेखलादिभिः दुरारोहा
'से पधएइत्यादि।
शब्दार्थ- से पच्चए-स पर्वतः' यह पर्वत 'सहमहप्पगासे-शब्द महाप्रकाश' अनेक नामों से अति प्रसिद्ध है 'कंचणमट्ठवण्णे-काश्चनमृष्टवर्णः' घर्षितसुवर्ण के जैसा शुद्ध वर्णवाला 'अनुत्तरे-अनुत्तर' सव पर्वतों में श्रेष्ट 'विरायती-विराजते' और सुशोभित है 'गिरिसु य पन्चदुग्गेगिरिषु च पर्वदुर्गः' वह सभी पर्वतों में उपपर्वतों के द्वारा दुर्गम है 'से गिरिवरे-असौ गिरिवर वह पर्वत श्रेष्ट भोमेव जलिए-भौमइव ज्वलितः मणि और औषधियों से प्रकाशित भूप्रदेश के जैसा प्रकाशित रहता है।॥१२॥
अन्वयार्थ -सुमेरु पर्वत शब्दों से महान् प्रकाश वाला अर्थात प्रसिद्ध है। सुवर्ण के समान वर्णवाला है । सर्वश्रेष्ठ होकर शोभायमान
'से पव्वए' छत्यादि
शपथ --'से पव्वए-स पर्वतः' ते 'त 'सदमहापगासे-शब्दमहाप्रकाशः' मन नामाथी सत्यत प्रसिद्ध थे 'कंचणमढवण्णे-काञ्चनमृष्ट वर्णः' पषित सोना स२५॥ शुद्ध पाणी 'अणुत्तरे-अनु चरः' मा ४ ५ i Sत्तम 'विरायतीविराजते' मने सुशामित छ. 'गिरिसु य पव्वदुमो-गिरिपु च पर्वदुर्ग' मधास यतामा ५५ता द्वारा गम छे. 'से गिरिवरे-असौ गिरिवरः' ते पर्वत श्रेष्ठ 'भोमेव जलिर-भौंम इव ज्वलिः' मणि भने भोषाधियोथी प्रोशित ભૂપ્રદેશ સર પ્રકાશિત રહે છે. ૫ ૧૨ છે
સૂત્રાર્થ–તે સુમેરુ પર્વત અનેક શબ્દ (નામે) વડે સુપ્રકાશિત (પ્રખ્યાત છે. સુવર્ણના જેવાં વર્ણવાળે છે અને સર્વશ્રેષ્ઠ પર્વત રૂપે વિ.