Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समयार्थवोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ३ उ. ३ अन्यतीथिकोक्ताक्षेपोत्तरम् १ तथा साधुस्वरूपधारणात प्रवजिताश्चेति उभयपक्ष सेवित्वम् । यद्वा-स्वतोऽसदनु. ष्ठानम् , सदनुप्ठानकर्तृणां निन्दनमिति पक्षद्वयं सेवध्वम् । एवं रूपेण-'परिभासेज्जा' परिभाषेन, भिक्षुस्तानिति भावः ॥११॥
पुनरन्तरमाह-'तुम्थे' इत्यादि । म्लम्-तुले भुजह पालतु गिलाणो अभिहडंमि या।
तं च वीओदगं सोचा तमुस्लिादि जंकडे ॥१२॥ , छाया----यूयं भुद्धवं पात्रेषु ग्लानस्य अभ्याहृते च यत् ।
. तं च वीजोदकं भुक्त्वा तमुद्दिश्यादि यत्कृतम् ॥१२॥ आदि आहार करने के कारण गृहस्थपक्ष का सेवन कर रहे हो और साध का रूप धारण करने तथा दीक्षित होने के कारण साधु पक्ष का सेवन करते हो, इस प्रकार द्विपक्ष सेबी हो । अथवा स्वयं तो असत आचरण करते हो और सत् आचरण करने वालों की निन्दा करते हो, इस कारण भी दोनों पक्षों के सेवन करने वाले हो । इस प्रकार साधु उन आक्षेप कर्ताओं को उत्तर देखें ॥११॥
पुनः कहते हैं-'तुम्भे' इत्यादि ।
शब्दार्थ--'तुले-यूयम्' आपलोग पाएस्सु-पात्रेषु' कांसे आदि के पात्रों में 'भुंजह-सुध्वम्' भोजन करते हैं तथा 'गिलाणो-ग्लानस्य रोगी साधु के लिए , अभिल्डंमिया-अव्याहते यत्' गृहस्थों द्वारा जो. भोजन मंगवाते हैं 'तं च वीओदग-तं च पोजोदकम्' सो आप बीज और कच्चे जल का 'भोच्चा-भुक्त्वा उपभोग करके तथा 'तमुद्विस्तादि સેવન કરી રહ્યા છે, અને સાધુનો વેષ ધારણ કરેલ હોવાથી તથા દીક્ષિત હોવાને કારણે આપ સાધુ પક્ષનું સેવન કરી રહ્યા છે-આ પ્રકારે આપે દ્વિપક્ષનું સેવન કરનારા છે. અને સત્ આચરણની નિંદા કરી છે, તે કારણે તમે બન્ને પક્ષોનું સેવન કરનાર, છો તે આક્ષેપ કરનારાઓને સાધુએ આ પ્રકારને ઉત્તર આપવું જોઈએ, n૧૧ા __ . जी तमने मेवे वाम मा५वा है-'तुभे' या
- Awar-'तुम्भे-यूयम्' मा५ । 'पाएसु-पात्रेसु' ४ial पोरेन। पात्रोमा 'भुजह-
भुम्' a ४३॥ छ।, ता, 'गिलाणो-ग्लानस्य'., जा साधुना भाटे सन 'अभिहडमि या-अभ्याहृते यत्' स्थान RI... भाव छ. 'तच बीओदगं-तच धीजोदकम्' मा५ ते ular भने ४ाया पानी
सू० १५