Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सूत्रकृतागसूत्रे - ये तूत्तममहापुरुषास्ते तु अनामतमुखजनकमेव तपः संयमाऽनुष्ठानं कुर्वन्ति । तेन वार्द के पश्चात्तापं न कुर्वन्तीति दर्शयितुमाह सूत्रकार:-'जेहिं काले' इत्यादि। मूलम्-जहिं कोले परिक्षेतं न पच्छा परितप्पए।
ते धीरां बंधणुर्मुस्का नाकखंति जीवियं ॥१५॥ छाया-यैः काले पराक्रान्तं न पश्चाद परिवष्यन्ते ।
ते धीरा बन्धनोन्मुक्ताः नाशंक्षन्ति जीवितम् ॥१५॥ - वैभव के अभिमान में आकर लथा यौवन के मद में चूर होकर जो कार्य किये जाते हैं, अवस्था बीत जाने पर अब उनका स्मरण हृदय में शल्य की तरह खटकला है ॥१४॥
किन्तु उच्चकोटि के महापुरुष भविष्यत् में सुख उत्पन्न करनेवाले तप एवं संयम का अनुष्ठान करते हैं। उन्हें वृद्धावस्था में पश्चासाप नहीं करना पडता। इस तथ्य को दिखलाते हुए सूत्रकार कहते हैं-जेंहिं काले' इत्यादि ।
शब्दार्थ-'जेहि-यैः जिन पुरुषोंने 'काले-काले' धर्मोपार्जन कालमें 'परिकंत-पराकान्तम् ' धर्मोपार्जन किया है 'ते-ते' वे पुरुष 'पच्छापश्चात् ' पीछेसे 'न परितप्पए-न परितप्यते' पश्चात्ताप नहीं करते हैं 'वंधणुम्मुक्का-बन्धनमुक्ताः' बन्धन से टेहए 'धीरा-धीराः' वे धीर पुरुष 'जीवियं-जीवितम् ' असंयमी जीवनकी 'नायकंखति-नावा. क्षन्ति' इच्छा नहीं करते हैं ॥१५॥
જઈને તથા યૌવનના મદમાં ભાન ભૂલીને જે કાર્યો મેં કર્યા છે, તેનું સમરણ હવે આ વૃદ્ધાવસ્થામાં હૃદયની અંદર કાંટાની જેમ ખટકે છે” ૧૪
અજ્ઞાની માણસોને પાછળથી પસ્તાવું પડે છે, પણ ઉચ્ચકોટિના મહાપુરુ ભવિષ્યમાં સુખ ઉત્પન્ન કરનારા તપ અને સંયમની આરાધના કરે છે. તેમને વૃદ્ધાવસ્થામાં પશ્ચાત્તાપ કરે પડતું નથી. આ તથ્યને હવે સૂત્ર४२ ४८ ४रे छ-'जेहिं काले' त्याह
साथ-'जेहि-यैः २ ५३षा में काले-काले' धर्मापानमा 'परिक्त। पराक्रान्तम्' ध पान यु छे 'ते-ते' ते ५३५ पच्छो-पश्चात्' ५७थी 'न परितप्पर-न परितप्यते' पस्ताव ४२di नथी. 'बंधणु मुक्का-बन्धनोन्मुक्ताः' म धनया छुटेल 'धीरा-धीरा.' धा२ ५३५ 'जीवियं-जीवितम्' असयभी पनी 'नाव खंति-नावकान्ति ' २७५ ४२ता नथी. ॥१५॥