Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समयार्थयोधिनी टीको प्र. Q. अ. ४ उ. २ स्खलितचारित्रस्य कर्मवन्धनि० ३०ऐं
टीका-'जाए फले समुप्पन्ने जाते फले समुत्पन्ने, जायते इति जातः पुत्रः स एव फलं दारंपरिग्रहस्य गृहस्थानाम् । दारपरिग्रहस्य यदुच्यते फलं कामोपभोगा, स तु गौणः ।' मुख्य फलं तु पुत्र एव। ., अव्यक्तभाषिणो वाला यह सुख नराणां माति तादृशमुग्वाग्रेऽन्यत् “सर्वमकिचित्करं भवति । तदुक्तम् । . . . . . , .' . ' 'यत्तच्छपनिकेत्युक्तं, बालेनाऽव्यक्तभाषिणा । ..
- - हित्वा सांख्यं च योगं च, तन्मे मनसि वर्तते ॥१॥ पुत्रसुखं दरिद्रधनिनोः सम व भवति इदं सुखं वाह्य सामपनपेक्षमेव भवतीति । तथा___ अन्वयार्थ-पुत्र होने के पश्चात् जो होता है उसे दिखलाते हैं-वह स्त्री कभी कहती है इले लो-संभालो, कभी कहती है इसे छोडो। कोई कोई पुत्रपोषी लोग तो ऊंट की तरह भार वहन करते हैं ॥१६॥ - टीकार्थ--पुत्र का दूसरा नाम 'जान' है। गृहस्थों के लिए विवाह का फल पुत्रप्राप्ति है । विवाह का फल कामभोग जो कहा जाता है, वह फल गौण है, प्रधान कर पुत्रप्राप्ति ही है। तुतलाते हुए बालक की बोली सुनकर मनुष्यों को जिस सुख की प्राप्ति होती है, उसके सामने सभी कुछ तुच्छ है। किसी पुत्रपोषीने कहा है-'यत्तच्छपनिकेत्युक्तं' इत्यादि।
- तुतलाते हुए बालक ने 'शपलिका' ऐसा कहा। यह सुनकर सांख्य और योगदर्शन की गंभीर शब्दावली भूलकर एकमात्र वही शब्द मेरे मन में रह गया है ॥१॥
पुत्र सुख ऐसा सुख है जो दरिद्र और धनवान् दोनों को ही समान रूप से प्राप्त होता है। इसे प्राप्त करने के लिए किसी अन्य पाह्य सामग्री
* ટીકાથ–પુત્રને “જાત” પણ કહે છે ગુડ પુત્રપ્રાપ્તિને લગ્નના ફળરૂપ માને છે. લગ્નનું ફળ જે કામગ માનવામાં આવે છે. તે તે ગૌણફળ છે, પ્રધાન ફળ તે પુત્ર પ્રાપ્તિ જ છે બાળકની તતડી વાણું સાંભળતા મનુષ્યોને જે સુખની પ્રાપ્તિ થાય છે, તે સુખ આગળ જગતનાં સઘળાં સુખે ફીકા લાગે छ. ४ह्यु ५५ छ है-'यत्तच्छपनिकेत्युक्तं' याति-- 1, - माण तातडीमालीमा 'शपनि।' २५४नु स्या२३ यु. साल. નીખે રદર્શન અને સાંપ્રદર્શનની ગંભીર શબ્દાવલીને હું ભૂલી ગયે. માત્ર “શનિકા” શબ્દ જે મારા મનમાં ગુંજી રહ્યો. ના . - : पुसुम रम सुम छ नी रिद्र म पनि मानने समान રૂપે પ્રાપ્તિ થાય છે. તેને પ્રાપ્ત કરવાને માટે કેઈ અન્ય બાહ્ય સામગ્રીની