Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सूत्रकृताङ्गसूत्रे मूलम्-असूरियं नाम सहामितावं अंधं तमं दुप्पत महतं ।
उडूं अहेअंतिरियं दिलासु सलाहिओ जत्थगणी झियाई।११॥ छाया-अमूर्य नाम महाभिनाय मन्धन्तमो दुरुपतरं महान्तम् ।
___अर्ध्वमस्तिर्यग् दिशा स्पादितो यत्रानिः ध्मायते ।।१।।
अन्वयार्थः-(अमूरियं नाम) अमूर्य नाम-यत्र स्यों नास्ति (महाभिना) महाभिताप-महातापयुक्तं (अं तमं दुप्पत महत) अधं तमो दुष्पतरं महान्तम् परमातानिक देव नारकों के कर्मों के अनुत्तार ही किसी को जल में गिराते हैं, किसी को भाड में भूनते हैं और किसी को आग में पकाते हैं ।।१०।।
शब्दार्थ- 'अभूरियं बाल-अस्र्य नाम' जिम में सूर्य नहीं है महाभितावं-महालितापं और जो महात् ताप से युक्त है 'अंधं तमं दुप्पतरं महंत-अन्धं तमो दुष्पतरं महान्त' तथा जो भयंकर अंधकार से युक्त एवं दुःख से पार करने योग्य और महान है 'जत्थ-यत्र' जहाँ जिस नरकावास में 'उड्डू-ऊर्ध्वम्' पर 'अहे-अध' नीचे तिरियंतिर्यक् तथा तिरछी 'दिसासु-दिशास्लु' दिशाओं में समाहिया-समाहितः सम्यक् प्रकार से व्यवस्थापित अगणी-अग्नि:' अग्नि 'जियाईध्मायते' जलती रहती है ॥११॥ ___ अन्वयार्थ--जहां सूर्य नहीं है, जो घोर संताप से युक्त है, अन्ध. कारमय है, दुस्तर है और महान है तथा जहां ऊपर, नीचे और तिर्ण
કમ અનુસાર જ શિક્ષા કરે છે. તે શિક્ષા રૂપે કેઈને પાણીમાં ડુબાવવામાં આવે છે, તે કેઈને ભઠ્ઠીમાં ચણાની જેમ શેવામાં આવે છે, તો કોઈને આગ પર માંસની જેમ પકાવવામાં આવે છે જેના
शाय-'मसूरिय' नाम-असूर्य नम' मा सूर्य न जाय तभ०४ २ 'महाभिताव-महाभिनापम्' महान् त हाय छ, तथा 'अंधं तमं दुप्पतरं महंत-अंध तमो दुष्प्रतरं महान्तम्' तयारे मय ४२ मेवा मधाराथा युत तेमन मधी पार पाभवा योग्य भने महान् छे, ''जत्थ -यत्र'रे
२४पासमा 'उडूढं-ऊर्ध्वम्' १५२ 'अहे-अध' नीये 'तिरिय-तिर्यक' तथा तिरछी दिलासु-विशासु' हिशासमा 'समाहिया- समाहितः' सारी शते २५ वाभा मावस 'अगणी-अग्निः' मनि 'झियाई -मायते' माती २ छ ॥११॥
સૂવાર્થ-જ્યાં સૂર્યનાં દર્શન પણ થતા નથી. જે ઘર સંતાપથી યુક્ત છે, જે અંધકારમય છે, જે દુસ્તર અને મહાન છે, તથા જેની ઉપર, નીચે