Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समयार्थबोधिनी टीका प्र. Q. अं. ४ उ. १ स्त्रीपरीषहनिरूपम् २७५ छाया-नोवारमेवं बुद्धयेत नेच्छेदगारमागन्तुम् ।
बद्धो विषयपाशेन मोहमापद्यते पुनर्मन्दः ॥३१॥इति ब्रवीमि।। अन्वयार्थः-(एवं) एवमुक्तपकारकं प्रलोभनं साधुः (नीवार बुझेना) नीवारं बुध्येत-वन्यपशुबंधने तंडुलकण मित्र जानीयात् (अंगारं) आगारं-गृहम् (आगंतुं) आगन्तुम् (गो इच्छे) नो इच्छेत् (विसयपासेहि) विपरपाशैर्बद्धः (मंदे)
तब साधु को क्या करना चाहिए ? लो कहते हैं 'णीवार०' इत्यादि ।
शब्दार्थ-एवं-एवम्' उक्त प्रकार के प्रलोभन को साधु 'नीवारं वुज्झेज्जा-नीवारं बुध्धेत' जंगल के पशु को वश करने में चावल के दाने के जैसा समझे 'अमारं-आगारम्' घर 'मागंतुं-आगन्तुम्' आने की 'णो इच्छे-नो इच्छेत्' इच्छा न करें 'विसयपासेहि-विषयपाशैः' विषयरूपी पाश से बँधा हुआ 'मंदे-मन्दः' अज्ञानी पुरुष 'मोहमावज्जइ मोहमापद्यते' मोह को प्राप्त होता है 'त्तिवेमि-हति प्रवीमि' ऐसा मैं कहता हूँ ॥३१॥ ___अन्वयार्थ--इस प्रकार के प्रलोभन को साधु नीवार समझे वन्य पश को बांधने के लिये बिखेरे हुए तन्दुलों के समान समझे। वह उनके घर जाने की इच्छा भी न करे। विषय के बन्धन में बद्ध अज्ञानी
આ પ્રકારનાં પ્રલોભને બતાવવામાં આવે, ત્યારે સાધુએ શું કરવું न त सूत्रा२ मताव छ -'णीवार०' त्यादि
शहाथ---‘एवं-एवम्' 61 Naat मनाने साधु 'नीवार बुज्ञज्जानीवारम बध्येत' ही प्राणुियात १श ४२वामा यामाना हायानी भा४ सभर 'अगार-अनारम्' ३२ 'आगंतु-आगन्तुम् ' आमानी 'णो इच्छे-नो इच्छेत्' ५२७४न ४२ 'विसयराहि-विषय' विषय३५ी पाशी मचाये। मंद-मन्दः' अज्ञानी ५३५ 'मोहमावाइ-मोहमापद्यते' मोड पामे छे. 'त्तिवेमिइति ब्रवीमि' सेम छु. 311
સત્રાર્થ-આ પ્રકારનાં પ્રલો મનેને સાધુએ નીવાર (પશુઓને જાળવવા ફસાવવા માટે વેરેલા તન્દુલ) સમાન સમજવા જોઈએ. તેણે તે સ્ત્રીના ઘેર જવાની ઇરછા પણ ન કરવી જોઈએ. તેણે એ વાતને બરાબર સમજી લેવી જોઈએ કે વિષયના બન્ધનમાં બંધાયેલે પુરુષ ફરી તેમાં જકડાઈ જાય છે કે તેને તેઢ