Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सूत्रकृताङ्गसूत्र भवन्ति । पारलौकिकयातनायां तु नरकादिकं भवतीति सच्छास्त्रमेव प्रमाणम् । तस्मादात्महितार्थिना स्त्रीसंबन्धो नितरां हेय इति ॥२१॥ मूलम्-अदु कैण्णणालच्छेदं कंठच्छेदणं तितिक्खंति।
इति तत्थ पावसंतता न य बिति पुगो न कोहिति॥२२॥ छाया--अथ कर्णनासिकाच्छेदं कण्ठच्छेइन तितिक्षन्ते ।
__ इति तत्र पाप-सन्तप्ताः न च ब्रुवते न पुनः करिष्यामः ॥२२॥ अन्वयार्थ:--- (पाइसंवत्ता) पायसन्तताः (इति) इति-इहलोके (अण्णनासच्छेद) कर्णनासिकाछेद तथा (कंठच्छेदणं तितिक खंति) कण्ठच्छेदनमपि तितिक्षन्ते सहन्ते (न य विति) न च ब्रुरते (न पुणो काहिति) न पुनः करिष्याम इति ।।२२।। इसी लोक में दिए जाते हैं । परलोक में उनको नरक आदि में जाना पडता है। वहां कैसी कैलो धाननाएं भुगतनी पड़ती हैं, इस विषय में तो शास्त्र ही प्रमाण है । अतएव आत्महित के अभिलाषी पुरुष को स्त्री का सम्पक सर्वथा ही त्याग देना चाहिए ॥२१॥ __ शब्दार्थ--'पापसंत्तत्ता-पापसंतता' पापी पुरुष 'इति-इति' इस लोक में 'इगनालच्छेई-कर्णनासिकाछेदं' कान और नाक का छेदन तथा 'कंठच्छे इणं तितिक्खंति-कण्ठच्छेदनं तितिक्षन्ते' कंठ-गले का छेदन सह लेते हैं 'न य बिति-न च ब्रुवते' परन्तु वे ऐसा नहीं कहते कि 'न पुणो काहिति-न पुनः करिष्याम इति' अब हम फिर से पाप नहीं करेगे ।.२२॥ ___ अन्वयार्थ-पाप से संतप्त पुरुष इस लोक में कान और नाक का કઈ કઈવાર તે તે પરસ્ત્રીગામીને જીવતા બાળી દે છે. આ બધા દંડ આલેકના છે. પરલોકમાં પણ તેને દુઃખ જ ભેગવવું પડે છે. નરકગતિ પામીને તેને કેવી કેવી યાતનાઓ વેઠવી પડે છે, તે બાબત તે શામાંથી જાણું લેવી જોઈએ. તેથી આત્મહિતની અભિલાષા રાખનાર પુરુષે સ્ત્રીના સંપર્કને તે સર્વથા પરિત્યાગ જ કરે જોઈએ ૨૧ ,
शहाथ-पावसंतत्ता-पापसंतप्ता.' पापी पुरुष 'इति-इति' मा तभी 'कण्णनामच्छेद-कर्णनासिकाच्छेद' छान अने नानु हन तथा 'कंठच्छेदण तितिक्खंति-कण्ठच्छेदन तितिक्षन्ते' ४४ ४ता सानु छेड्न सहन ४Na छे. 'न य विति-न च ब्रुवते' ५२'तु तेया मेवु नयी ४ता 'न पुणो काहिति-ज पुनः करिष्याम इति' थी 1 पा५ नही ४३. ॥२२॥
સૂવાથ–મૈથુનસેવન કરનારા પાપી લેકો આ લેકમાં કાન, નાક અને