Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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३९४ . . . . . . . . . संत्रतासा छाया--संख्याय पेशलं धर्म दृष्टिमान परिनिर्वृतः।
उपसर्गान् नियस्य आमोक्षाय परिव्रजेत् ॥२२॥ अन्वयार्थः-(दिटिमं) दृष्टिमान-सम्यग्दृष्टिः (परिनिव्वुडे) परिनिर्वृतः शान्तः पुरुषः (पेसलं धम्मं संखाय) पेशलं-मोक्षानुकूलं धर्म श्रुतचारित्रलक्षणं संख्यायज्ञात्वा (उपसग्गे) उपसर्गान् अनुकूलपतिकूलान् (नियामित्ता) नियम्य-अविसह्य, (आमोक्खाय) आमोक्षाय मोक्षपर्यन्तं (परिधए) परिव्रजेत् संयमानुष्ठानं कुर्यात्।२२।
टीका--'दिद्विमं दृष्टिपान् सम्यग्दर्शनी 'परिनिव्वुडे' परिनि तः कषायोपशमाच्छान्तः 'पेसलं धम्म संखाय' पेशलं-मनोज्ञ मोक्ष प्रत्यनुकूलम् 'धम्म' धर्मम्-श्रुनचारित्राख्यम् ‘संखाय' सम्यक् स्वबुद्धया ज्ञात्वा, अन्यस्मादुपश्रुत्य वा
शब्दार्थ:-दिष्टिमं-दृष्टिमान्' सम्यग्दृष्टी 'परिनिव्वुडे-परिनिर्वृतः' शांतपुरुष 'पेसलं धम्म संखाय-पेशलं धर्म संख्याय' मुक्ति प्राप्त करने में अनुकूल ऐसा श्रुतचारित्ररूप इस धर्म को जान करके 'उवसग्गे-उपसर्गान्' अनुकूल प्रतिकूल उपसर्गों को नियामित्ता-नियम्य' सहन करके 'आमोक्खाय-आमोक्षाय' मोक्ष प्राप्ति पर्यंत 'परिवए-परिव्रजेत्' संयम का पालन करे ॥२२॥
अन्वयार्थ--सम्यग्दृष्टि से सम्पन्न शान्त पुरुष मोक्ष के अनुकूल इस सुन्दर धर्मको जानकर तथा अनुकूल और प्रतिकूल उपसर्गों को सहन करके मोक्ष प्राप्ति पर्यन्त संयम का आचरण करे ॥२२॥ ,
टीकार्थ--सम्यग्दर्शन से युक्त तथा कषायों के उपशम से शान्त पुरुष इस मनोज्ञ एवं मोक्ष के अनुकूल श्रुतचारित्ररूप धर्म को सम्यक
सार्थ-दिद्विमं-दृष्टिमान्' सभ्यष्टि 'परिनिव्वुडे-परिनिवृतः' शांत ५३५ पेखलं धम्म संखाय-पेशलं धर्म संख्याय' भुति प्राप्त ४२वाम गनुण मेवा श्रुतयारित्र३५ मा मन नीने 'उवसग्गे-उपसर्गान्' मनु प्रति 64सनि नियामित्ता-नियम्य' सहनशन 'आमोक्खाय-आमोक्षाय' मोक्ष प्राप्ति सुधी परित्रए-परिव्रजेत्' सयम पालन.४२. ॥२२॥
સૂત્રાર્થ–સમ્યગ્દષ્ટિથી યુક્ત, શાન્ત પુરુષે મોક્ષને અનુકૂળ આ સુંદર ધર્મનું સ્વરૂપ સમજી લઈને તથા અનુકૂળ અને પ્રતિકૂળ ઉપસર્ગોને સહન કરીને મોક્ષપ્રાપ્તિ થાય ત્યાં સુધી સંયમની આરાધના કરવી જોઈએ. મારા , - टीर्थ-सभ्य श नथी युत भने ४५.योना भने बीच मेनु ચિત્ત શાન્ત થઈ ગયું છે એવા પુરુષે મોક્ષ પ્રાપ્ત કરાવનારા શ્રુતચારિત્રરૂપ