Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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- सूत्रकृतागसूत्रे मूलम्-एए पुत्वं महापुरिसा आहिता इहे संमंता। "
भोच्चा बीओदगं लिद्धा इंइ मेयमणुस्सुयं ॥४॥ छाया--एते पूर्व महापुरुषा आख्याता इह संमताः ।
भुक्ता बीनोदकं सिद्धा इति एतत् अनुश्रुतम् ॥४॥ अन्वयार्थ:--(पु) पूर्व =पूर्वकाले (एए महापुरिसा) एते महापुरुषाः (आहिया) आखाता:-जगत्मसिद्धाः, तथा (इह) इहास्मिन जैनागमेपि (संन्ता) सम्मताः मान्याः, (चीभोदग) बीजोदकं (भोच्चा) भुक्त्वा (सिद्धा) सिद्धा--मोक्षं पाता: (इइमेयं) इत्येतत् (अणुश्मय) मयाऽश्रुनं महाभारतादि ग्रन्थत इति ॥४॥ जिस मार्ग से मोक्ष प्राप्त किया, हमें भी वैसा ही करना चाहिये। उनसे विपरीत मार्ग का आश्रय नहीं लेना चाहिए ॥ ३ ॥ .. .
शब्दार्थ-'पुवं-पूर्व' पूर्व काल में 'एए महापुरिसा-एते महापुरुषा' ये महापुरुष 'आहिया-आख्याता' जगत्प्रसिद्ध थे, तथा 'इह-इह' इस जैन आगम में भी 'संमता-सम्मताः' मान्यपुरुष थे 'बीओदग:बीजोदकम्' इन महापुरुषोंने बीज-कन्दमूलादिक और उदक-शीतल जल का 'भोच्चा-भुक्त्वा' उपभोग करके सिद्धा सिद्धा: मोक्ष प्राप्त किया था 'इहमेयं-इत्येतत्' यह 'अणुस्स्तुथं -मया अनुश्रुतम् ' मैंने (महाभारत
आदिमें सुना है ॥ ४ ॥ ___ अन्वयार्य--प्राचीन काल में यह महापुरुष जगत्प्रसिद्ध थे और जैनागममें भी ये मान्य हैं। ये बीज और सचित्त जलको उपभोग करके सिद्ध हुए हैं, ऐसा मैंने महाभारत आदि ग्रन्थों से सुना है ।। ४ ॥ લે જોઈએ તેમના તે માર્ગને અનુસરવાથી જ મોક્ષ પ્રાપ્ત થશે-વિપરીત માર્ગે ચાલવાથી આત્મકલ્યાણ સાધી શકીએ નહીં. આ પ્રકારનું તેઓ પ્રતિપાદન કરે છે. પણ
शहा---'पुव्वं-पूर्व' नुन समयमा १ 'एए महापुरिसा-एते महापुरुषाः' मा महा५३५ 'आहिया-आख्याताः' गत् प्रसिद्ध ता, तथा "इह-इह' मा २ भागममा ५५ 'समता-सम्मताः' भान्य ५३५ ता 'बीओदगं-बीजोदकम्' सा महापु३षामे मीर-3-४, भूद वगैरे अने ४-शीत पाना 'भोज्ञाभुक्त्वा' प ४शन "सिद्धा-सिद्धाः' मोक्ष प्राध्या -ता. 'इइमेयं-इत्येततू' भा प्रभा अणुस्सुयं-मयाअनुश्रुतम्' में' (महामारत विगैरेभा) सामन्यु छ. १४
સૂત્રાર્થ–-પ્રાચીત કાળમાં આ પુરૂ જગતવિખ્યાત હતા. જૈન આગમામાં પણ આ પુરૂને માન્ય ગણવામાં આવેલ છે. તેમણે બીજ અને