Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ३ उ. ४ स्खलितस्य साधोरुपदेशः १५१ सात-मोक्षसुखं निरतिशयाऽपरिच्छिन्नम् । सातेन-विषयजनितमुखेनैव जायते । तथा च वत्तारो बदन्ति--
'सर्वाणि सत्तानि मुखेरतानि सर्वाणि दुःखाच समुद्विजन्ते ।।
तस्मात्सुखार्थी च सुखाय दद्यात् सुखमदाता लमते मुखानि ॥१॥ न केवलं सुखादेव, सुखमित्यत्र वचनमेव प्रमाणम् , किन्तु युक्तयोऽपि भवन्ति । तथाहि-कारणमनुसरति कार्यम् , यादृशं कारणं तागेव भवति कार्यम् , न तु तद्विपरीतम् , यथा वटवीजात वटांकुरमेव जायते, न तु अस्मादन्यस्य विजातीयस्य । एवमैहलौकिक वादेव मोक्षसुखं स्यानतु लोचादि दुःखात् कथमपि तद्विजातीएवं अनन्त सुख विषयजनित सुख से ही उत्पन्न होता है । कहने वाले कहते भी हैं--'सर्वाणि सत्यानि सुखेरतालि' इत्यादि। ___ संसार के समस्त प्राणी सुख में रत हैं, सब दुःख से घबराते हैं, अतएव जो सुख का अभिलाषी है वह दूसरों को सुख पहुँचावे । जो दूसरों को सुख देता है वह स्वयं सुख प्राप्त करता है ॥१॥ .
सुख से सुख की प्राप्ति होती है, इस विषय में केवल वचन ही प्रमाण नहीं है बल्कि युक्तियां भी विद्यमान हैं। वह इस प्रकार हैंकार्य कारणं का अनुसार करता है । जैसा कारण होता है वैसा ही कार्य होता है उससे विपरीत नहीं होता। जैसे वट के बीज से घट का ही अंकुर उत्पन्न होता है। अन्य वीज से अन्य विजातीय अंकर उत्पन्न नहीं होता । इसी प्रकार लौकिक सुख से ही मोक्ष का सुख हो सकता है, लोच आदि के दुःख को सहन करने से नहीं । दुःख मेव at ' छ –'सर्वाणि सत्त्वानि सुखेरतानि' त्या:--'. . 'ससारमा समस्त प्राणी सुममा २a (प्रवृत्त) छे. मां मया ગભરાય છે. તેથી એવું કહી શકાય કે જે સુખની અભિલાષા રાખતે હેયે તેણે સૌને સુખ આપવું જોઈએ. જે બીજાને દુઃખ દે છે તે પોતે જ भी थाय छे. ॥१॥ ..
સુખ દ્વારા જ સુખની પ્રાપ્તિ થાય છે, આ કથનનું માત્ર વચન, દ્વારા જ પ્રતિપાદન કરવામાં આવ્યું નથી, પણ તક, દલીલ આદિ દ્વારા પણ તેઓ તેનું સમર્થન કરે છે–કાર્ય કારણનું અનુસરણ કરે છે. જેનું કારણ હોય છે, તેવું જ કાર્ય થાય છે કારણથી વિપરીત કાર્ય સંભવી શકતું નથી. વડના બીજમાંથી વડનું જ બીજ ઉત્પન્ન થઈ શકે છે. કોઈ પણ બીજ વિજાતીય અંકુરની ઉત્પત્તિ કરી શકતું નથી, એજ પ્રમાણે લૌકિક સુખ વડે જ