Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समयार्थवोधिनी टीका प्र. श्रु. अ.३ उ.२ उपसर्गजन्यतपःसंयमविराधनानि० -२५
अल्पसत्वो जीव इत्थर पि विकल्पयति, तदिह सत्रकारो दर्शपति को जाणई' इत्यादि। मूलम्-को जाणइ दिऊवातं इत्थीओ उदगाउ वा।।
चोइजता पाखामो ण णो अस्थि पकप्पियं ॥४॥ - छाया-हो जानाति व्यापातं स्त्रीतो उदकादवा । ...
नोद्यमाना पक्ष्यामो न नोऽस्ति मकल्पितम् ॥४॥ . . अन्वयार्थ:--(इत्थीओ) स्त्रीतः (उदगाउवा) उदकार-चा (विउवातं) व्यापातं संयमजीवितात् भ्रशं (को जापइ) को जानाति (णो) म अस्माकम् (पकश्यि )
अल्पसन्द जीव ऐला भी विचार करता है यह दिखलाते हुए शुनकार कहते हैं-'को जाणइ' इत्यादि ।
शब्दार्थ--'इथिओ-स्त्रीतली से 'उदगाउ बां-उदकात्वा अथवा उदक नाम कच्चे जल से विऊवातं-व्यापातम्' मेरा संयम भ्रष्ट हो जायगा 'को जाणई-को जानाति' यह कौन जानता है ? 'णो-लो'मेरे पास 'पफप्पियं-प्रकल्पितम्' पहले का उपार्जित द्रव्य भी 'ण अस्थिनास्ति' नहीं है इसलिये 'चेइज्जंता-नोचमानः' किसी के पूछने पर हम हस्तशिक्षा और धनुर्वेद आदि को 'पवखामो-प्रवक्ष्यामः' बतावेगे। ४॥ . . .अन्वयार्थ--कौन जाने स्त्री या जल के निमित्त से संचम ले, भ्रष्ट होना पडे ? पहले उपार्जन किया हुआ द्रव्य है नहीं । अत: दूसरों के पूछने पर धनुर्विद्या आदि का उपदेश करेंगे ॥४॥: . . . . . - તે અલ્પસર્વ કાયર સાધુ કેવા કેવા વિચાર કરે છે, તે સત્રકાર હવે अट ४२ छ-'को जाणइ' त्यादि, शहा--'इथिओ-स्त्रीतः' खीथी 'उदगाउपा-उदकातवा' अथवा 63 नाम या पाणीधी 'विऊवातं-व्यापातम्' मारे। सयमा भ्रष्ट थ शे को जाणइ-को जानाति' मा onी छ ? 'णो-नो' भारी पासे पकास्पियं -प्रकल्पितम्-पडसानु ति घन ५६ ‘ण अस्थि-नास्ति': नथी, सरसा भाट 'चेइज्जंता-नोद्यमानाः' न पूछपाथी समेतशिक्षा मने धनु परेने ‘पवक्खामो-प्रवक्ष्यामः' मतावीशु ॥४॥
સૂત્રાર્થ–-કેને ખબર છે કે સ્ત્રી અથવા જલ આદિને કારણે સંયમના भागे था ४यार,अष्ट थवु. ५-! पखi S 1 ४२९ द्र०य, छे नही