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अग्गुपट्ठाक
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अग्घापनियकम्म अग्गुपट्ठाक पु., [अग्रोपस्थापक], प्रथम या प्रधान परिचारक, किं अग्घति तण्डुलनाकिकाति पुच्छि, जा. अट्ठ. 1.131; ला. प्रमुख सेवक, प्रधान अनुवर्ती - को प्र. वि., ए. व. - मय्ह, अ. सत्पात्र होता है, सुयोग्य है, किसी कार्य के लिए सक्षम भिक्खवे, एतरहि आनन्दो नाम भिक्खु उपट्ठाको अहोसि या समर्थ होता है - किमग्घति तण्डुलनाळिकायं, अस्सान अग्गुपट्ठाको, दी. नि. 2.5; सम्मासम्बद्धस्स उपट्ठाको अहोसि मूलाय वदेहि राज, जा. अट्ठ. 1.131; - ग्घापेन्तो प्रेर., अग्गुपट्ठाको, म. नि. 2.248.
वर्त. कृ., पु., प्र. वि., ए. व., मूल्य लगवा रहा, मूल्यअग्गुपट्ठायिका स्त्री., [अग्रोपस्थापिका], प्रधान स्त्री- निर्धारित करवा रहा- अयं अग्घापनिको एवं अग्घापेन्तो न परिचारिका - तस्स अग्गउपट्ठायिका एका उपासिका, ध. चिरस्सेव मम गेहे धनं परिक्खयं गमेस्सति, जा. अट्ठ. 1. प. अठ्ठ. 1.234; पाठा. अग्गउपट्ठायिका.
130; गोणे अग्घापेन्तो विय तत्थेव ठितो कुमारे अग्घापति, अग्गे सप्त. वि. का प्रतिरू. काल और देशवाचक निपा. जा. अट्ठ. 7.316; - ग्घापेसि प्रेर.. अद्य, प्र. पु., ए. व., [अग्रे], सामने, पहले, आगे, - अग्गे च छेत्वा मज्झे च, -विसाखा तं अपिलन्धित्वाव कम्मारे पक्कोसापेत्वा अग्घापेसि. पच्छा मूलम्हि छिन्दथ, जा. अट्ठ. 4.140; अग्गे चाति ध. प. अट्ठ. 1.231; - ग्घापेतुं प्रेर., निमि. कृ. - न सक्का अवकन्तन्ता पन पठम अग्गे, जा. अट्ठ. 4.141.
केनचि अग्घापेतुं तुलेतुं परिमेतुं, मि. प. 185; - ग्घापेत्वा अग्गेन तृ. वि., प्रतिरू. निपा. [अग्रेण]. सन्दर्भानुसार केवल प्रेर., पू. का. कृ. - अग्घापेत्वा वातजवं. सिन्धवं सीघवाहनं. स. उ. प. के रूप में प्रयुक्त, द्रष्ट. परिवेण., भिक्ख., यद., अप. 1.105. विहार., सेय्य. के अन्त..
अग्घनक त्रि., केवल स. उ. प. के रूप में ही प्रयुक्त, अग्गोदक नपुं॰ [अग्रोदक], प्रथम जल, सर्वोत्तम जल, [अर्घनक], मूल्यवाला, द्रष्ट. सद्धपाद., कहापण., सतसहस्स. सम्मान में दिया गया जल - अहो वत अहमेव लभेय्यं के आदि के अन्तः; - भाव पु., मूल्यवान होने की अवस्था, भत्तग्गे अग्गासनं अग्गोदकं अग्गपिण्डं म. नि. 1.35%; मूल्यवत्ता, अर्घता - वं द्वि. वि., ए. व. - पञ्चन्नं अस्ससतानं अग्गोदकन्ति दक्खिणोदक, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).155; एक तण्डुळनाळि अग्घनकभावं जानाम, जा. अट्ट, 1.131. भिक्खाचारमग्गे पन अग्गासनअग्गोदक अग्गपिण्डत्थं वड्डानं अग्घनीय द्रष्ट. अनग्धनीय के अन्त.. पुरतो पुरतो याति, खु. पा. अट्ठ. 196.
अग्घसमोधान पु., समोधान-परिवास का एक विशिष्ट रूप, अग्घ पु., [अर्घ], 1. कीमत, मूल्य, दाम, - अग्घो मूले च परिवास के अनेक प्रकारों में से एक - अग्घसमोधानो नाम पूजने, अभि. प. 1048; यतो तया, अय्यपुत्त, अग्घो कतो, .... सम्बहुला वा आपत्तियो सब्बचिरपटिच्छनायो, तासं अग्घेन गहितो आरामो, चूळव. 287. - घेन तृ. वि., ए. व. - समोधाय तास रत्तिपरिच्छे दवसेन अवसे सानं अग्घेन अग्घं कयं हापयन्ति , जा. अट्ठ. 6.135; स. उ. प. ऊनतरपटिच्छन्नानं आपत्तीनं परिवासो दिय्यति, अयं वुच्चति के रूप में द्रष्ट. अनग्घ, अप्प., कोटि-कोटि-धन, ठपित., अग्घसमोधानो, चूळव. अट्ठ. 27, - टि. जो भिक्षु एक से मह., महतिमह., सम., सहस्स. के अन्त. तुल. पच्चग्ग; 2. अधिक सङ्घादिसेस नामक आपत्तियों में आपतित है तथा नपुं., [अर्घ्य, अर्घ + यत् अर्घमर्हति], पूजा, सत्कार, किसी लम्बी अवधि तक सङ्घ के सामने इन आपत्तियों को छिपाता व्यक्ति या अतिथि का सम्मान या स्वागत - अग्घो मूले च है, उसके लिए अग्घसमोधान परिवास का दण्ड-विधान बुद्ध पूजने, अभि. प. 1048; अग्घे भवन्तं पुच्छाम, अग्घं कुरुतु के द्वारा प्रज्ञप्त है. नो भवन्ति, जा. अट्ट. 4.354; - क त्रि., अग्घ से व्यु. अग्घापनक/अग्घापनिक त्रि., मूल्य-निर्धारण करने वाला, [अर्घ्य, अर्घ + यत् अर्घमर्हति], मूल्य, मूल्यवान्, मूल्यवाला, मूल्याङ्कन करने वाला, मूल्याङ्कक - कं पु., प्र. वि., ए. व. केवल स. उ. प. में ही प्रयुक्त - कोटिधनग्घकं एव पञत्तं - अज अग्घापनिकं करिस्सामी ति, जा. अट्ठ. 1.130; - सयनं अहु, म. वं. 30.77; - टुपन नपुं.. [अर्ध्यस्थपन], स्स ष. वि., ए. व. - अहो अग्घापनिकस्स आणसम्पदा, जा. मूल्य-निर्धारण, मूल्य-विनिश्चय - अग्घट्टपनं नाम मनुस्सानं अट्ठ. 1.131; - छान नपुं., मूल्यनिर्धारक का कार्यालय, जीविता वोरोपनसदिसं. जा. अट्ठ. 1.108.
मूल्याङ्कक का पद - बोधिसत्तस्सेव अग्घापनिकट्टानं अदासि. अग्घति अग्घ का वर्त, प्र. पु., ए. व. [अर्घति, अर्हति], जा. अट्ठ. 1.131.
शा. अ. मूल्यवान् होता है, मूल्य लगाता है, मूल्य के योग्य अग्घापनियकम्म नपुं., मूल्याङ्कन या मूल्य-निर्धारक का होता है - नव कोटियो अग्घति, ध. प. अट्ठ. 1.231; सा पन काम या मूल्याङ्कक का अधिकार - म्मे सप्त. वि., ए.
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