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अग्गि
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[अग्निप्रदीप्त ], अग्नि के द्वारा प्रदीप्त, आग के द्वारा ऊष्णीकृत या दहकाया गया तानि नपुं. प्र. वि., ए. व. महाराज, तेन हि किलेसकण्डेन हदये विद्धकालतो पट्ठाय मम अग्गिपदित्तानिव सब्धानि अङ्गानि म्हन्तीति दस्सेति, जा. अड. 2.230; - पपटिका स्त्री० [अग्निपर्परीका ], आग की चिनगारी, अग्निस्फुलिङ्ग आग की पपड़ी के द्वि. वि. ए. व. खज्जोपनकमतं अग्गिपपटिक, अ. नि. अड. 1. 38 (रो.), खज्जूपनकमत्ता अग्गिपपटिका, म. नि. अह 2 139 (रो० ); परिचरक / परिचरणक त्रि.. [अग्निपरिचारक ], यज्ञीय अग्नि का रक्षक या पहरेदार, अग्नि की परिचर्या या सेवा करने वाला णका पु. प्र. वि. ब. व. - अग्गिकाति अग्गिपरिचरणका, महाव. अट्ठ. 263; परिचरणट्ठान नपुं. अग्नि की परिचर्या का स्थान अत्तनो पत्तचीवरमादाय तस्स बहिनिगमे अग्गिपरिचरणद्वानं अगमासि ध. प. अ. 1.115 परिचारिक त्रि. वह, जो यज्ञाग्नि की परिचर्या या पूजा करता है, अग्निपूजक का फु. प्र. वि. व. क. ब्राह्मणा, भन्ते पच्छाभूमका कामण्डलुका अग्गिपरिवारका स. नि. 2 ( 2 ) 200 परिचित त्रि. [ अग्निपरिचित], आग से जला हुआ, आग से अभिभूत, अग्निदग्ध - तं पु०, द्वि. वि., ए. व. - अनुजानामि, भिक्खवे, पञ्चहि समणकप्पेहि फल परिभुज्जितुं अग्गिपरिचितं
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चूळव. 226 परियेसन नपुं. [अग्निपर्येषण] आग की खोज, आग की गवेषणानं द्वि. वि. ए. व. - सेय्यथापि, भूमिज, पुरिसो अग्गित्धिको अग्गिगवेसी अग्निपरियेसनं चरमानो म. नि. 3.181; पाक त्रि. ब. स. [अग्निपाक], अग्नि के द्वारा पकाया हुआ को प्र. कि.. ए. व. एत्थ मधुकपुप्फरसो अग्गिपाको वा होतु आदिव्यपाको वा महाव. अड. 361 पाकी त्रि, तापसों का एक वर्ग अग्गिपाकी अनग्गी च दन्तोदुक्खलिकापि च अप. 1.15 पारिचरिया स्त्री [अग्निपरिचर्या ], अग्नि की परिचर्या या सेवा यज्ञीय अग्नि की परिचर्या ब्राह्मण वस्ससतम्पि एवं अग्गिं परिचरन्तस्स तव अग्गिपारिवरिया गम सावकरस तङ्गणमत्तं पूजम्पि न पापुणाति घ. प. अड. 1.375; यं द्वि. वि. ए. व. अग्गिपारिचरियञ्च अनभिसम्भुणमानो दी. नि. 1.89 पूजोपकरण नपुं.. अग्निपूजा के उपकरण, अग्निपूजा की सामग्री, यज्ञ के समस्त उपकरण, द्रष्ट, अग्गिहुत्तमिस्स ब्रह्मा पु. व्य. सं. [अग्निब्रह्मन्], अशोक के भाञ्जे का नाम, जो सङ्घमित्ता (सङ्घमित्रा ) का पति था तस्सा च सामिको अग्गिब्रह्मा नाम
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अग्गि
कुमारों पारा अट्ठ. 1.37; भागिनेय्यो नरिन्दस्स अग्गिब्रह्माति विस्सुतो म. वं. 5.169,201 भय नपुं. अग्गिभयं, [ अग्निभय] अग्नि का भय, आग का डर उदकभयं राजभयं, चोरभयं इमानि खो, भिक्खये चत्तारि भयानि, अ० नि० 1 (2). 138; अग्गिभयन्ति अग्गिं पटिच्च उप्पज्जनकभयं अ. नि. अट्ठ. 2.326 - भाजन नपुं.. [अग्निभाजन), अग्नि कुण्ड, अग्नि रखने का पात्र, आग वाली अंगीठी नानि प्र. वि. ब. व. मन्दामुखियोति अग्गिभाजनानि युच्चन्ति महाव, अट्ठ 242 मन्थ पु.. [अग्निमन्ध] कणिका नामक वह वृक्ष, जिसकी लकड़ी को रगड़ कर आग पैदा की जाती है अग्गिमन्धो कणिका भवे अभि. प. 574 माली पु.. एक पौराणिक या कल्पित समुद्र का नाम लिं द्वि. वि. ए. व. नावा तं समुद्द अतिक्कमित्वा पुरतो अग्गिमालिं नाम गता, जा. अड्ड. 4. 127; - मित्ता स्त्री०, व्य. सं. [अग्निमित्रा ] एक भिक्षुणी का नाम, जो सङ्घमित्ता के साथ श्रीलंका (सिंहल ) गयी थी हेमा व मासगल्ला व अग्गिमित्ता मितावदा दी. नं. 15.78; 18.11 - मुख नपुं. प्रायः केवल सप्त. वि., ए. व. में ही प्रयुक्त, आग की भट्टी में तेजोधातुष्पकोपेन, होति अग्गिमुखेव सोति सु. नि. अनु. 2.162: ध. स. अड्ड. 336; मुख' पु. एक प्रकार का विषधर सांप खेन तृ. वि. ए. व. संततो भवति कायो, दट्टो अग्गिमुखेन वा ध. स. अड. 336 - यायन नपुं. [ अग्न्यायतन ] यज्ञाग्नि के रखने का गृह, अग्निशाला, अटसासि हरितरुक्खे, समन्ता अग्गियायनं, जा. अट्ठ. 5.153; अग्गियायनसङ्घातं अग्गिसालं समन्ता परिवारेत्वा जा. अ. 5.154 वच्छगोत्तसुत्त नपुं. म. नि. के 62वें सुत्त का शीर्षक, म. नि. 2.160, 166; वडमानक त्रि श्रीलंका के एक सरोवर का नाम अग्गिवड्डूमानकञ्च इच्चेकादसवापियो, म. वं. 35.95; वण्ण त्रि.. [अग्निवर्ण] आग की तरह गरम या उष्ण
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धातुयोव धातुसमूहं गण्हन्ति सण्डासेन अग्गिवण्णपत्तग्गहने वियाति, म.नि. अ. (मू०प.) 1(1).276; आदित्तन्ति अग्गिवण्णं दी. नि. अ. 1.213 वत नपुं. [अग्निव्रत] अग्नियज्ञ, आग की उपासना अग्गिवतं वा नागवतं वा सुपण्णवतं वा यक्खवतं वा, महानि. 66 - वतिक त्रि., [अग्निव्रतिक ]. अग्नि का उपासक, अग्नि की उपासना करने वाला - का पु., प्र. वि., ब. व. -अग्गिवतिका वा होन्ति, नागवतिका वा होन्ति महानि. 63 वीजनक नपुं, आग को लहकाने या उद्दीप्त करने का एक उपकरण, पंखा, व्यंजनकेन तृ.
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