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आध्यात्मिक आलोक ३. भौमालीक
पराई जमीन को अपनी बताकर ले लेना या टैक्स बचाने के लिए अपनी को पराई कहना आदि । यह भूमि सम्बन्धी झूठ है। ४. न्यासापहार
दूसरे की रकम (रुपये पैसे आदि) को हड़पने की बुद्धि से झूठ बोलना, इधर-उधर की बात बना कर टालना आदि धरोहर सम्बन्धी झूठ है । ५. झूठी साक्षी
न्यायालय, पंचायत आदि में स्वार्थवश झूठी गवाही देना, असत्य को सत्य और सत्य को असत्य बतलाना आदि कूट साक्षी सम्बन्धी झूठ हैं।।
गृहस्थ का धर्म है कि वह दूसरे के लिये हानिकारक हो वैसे बड़े झूठ को .कभी नहीं बोले । बहुत बार, खाकर न आने पर भी "भोजन कर लिया" ऐसा कहना, ठहरने की फुर्सत नहीं है, कहकर ठहर जाना आदि छोटे-छोटे झूठ मनुष्य अनावश्यक रूप से अनेक बार बोल जाता है । यों तो सभी प्रकार के झूठ वर्जित एवं निन्दित हैं किन्तु यदि सम्पूर्ण झुठ छोड़ने की शक्ति न हो तो बड़े झूठ से तो बचना ही चाहिए।
देवालय की ध्वजा और गाड़ी के चक्के के समान अपनी बातों को हमेशा बदलने वाले मर्द ( व्यक्ति ) दुःखमय जीवन व्यतीत करते तथा अपनी आत्मा को दूषित कर लेते हैं । लोक में उनकी प्रीति और प्रतीति कम हो जाती है । सत्य का पालन करने वाला जीवन में सदा सुखी रहता है । अतएव कवि ने बड़ा ही उत्तम परामर्श दिया है
ना नर गज न नापिये, ना नर लीजे तोल ।
'परशुराम' नर नार का, बोल बोल में मोल ।। मनुष्य की कीमत उसकी वाणी से है, नाप-तौल से उसकी कीमत नहीं होती। सत्य की महिमा ही वाणी में निहित है । महावीर भक्त आनन्द सत्यव्रत का संकल्प लेकर बड़े ही सम्माननीय व्यक्ति बन गए।
यदि कोई सेठ स्वयं झूठ का त्याग करे किन्तु मुनीम को झूठ बोलने को कह दे तो यह भी सेठ के लिए स्वयं झूठ बोलने के समान पापपूर्ण है । थोड़े लाभ के लिए, झूठ बोलकर अपने जीवन को लांछित करना सभ्य मनुष्य के लिये शोभनीय नहीं होता । लेन-देन में सौदेवाजी ( मोलभाव घट-बढ़कर करना ) भी ग्राहक और व्यापारी दोनों के लिए परेशानी का कारण है सौदेवाजी से दूर रह कर,