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आध्यात्मिक आलोक प्रशंसा सारे देश में छायी हुई थी । साथ ही वह मनोविज्ञान में भी निपुण थी । विभिन्न उद्देश्यों को लेकर लोग उसके पास आया करते थे । शकटार ने सोचा कि अपने पुत्र को सभी विद्याओं में दक्ष बनाने के लिए इसे वेश्या का संग भी कराना चाहिए। क्योंकि नीति कहती है दक्षता के लिए "वारांगना राज सभा प्रवेशः" की भी आवश्यकता होती है । राजकीय पदों में सफलता प्राप्ति के लिए विद्या का बहुमुखी रूप न हो तो सफलता नहीं मिलती । कहा भी है हाकिमी गरम की, दुकानदारी नरम की और बहू बेटी शरम की आदि ।
शकटार ने स्थूलभद्र को रूपकोषा के घर प्रशिक्षण के लिए भेजने का निश्चय किया, परन्तु स्थूलभद्र सुसंस्कार के कारण जाने को अनिच्छुक हुए आदि बातें आगे सुस्पष्ट होंगी । किन्तु इस उपरोक्त कथन से हमें यह सीख लेनी है कि अपनी सन्तान को सुशिक्षा देकर भावी पीढ़ी का जीवन सुमधुर व सुन्दर बनाने में संस्कार की . बड़ी आवश्यकता होती है क्योंकि उत्तम जीवन-निर्माण में ही स्वपर का कल्याण संभव