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' आध्यात्मिक आलोक
429 साथ अध्ययन-मनन करें और उसके पठन-पाठन में योग्यता के अनुसार अपना योग प्रदान करें। स्वाध्याय के द्वारा श्रुत का संरक्षण व प्रसारण करना हम सबका कर्तव्य है । ऐसा करने से इस लोक और परलोक में परम कल्याण होगा । .. कल कहा गया था कि साधना के मार्ग पर चलने वाला सावधान साधक दो बातें सदा ध्यान में रखे-१) उपादेय क्या है और (२) हेय क्या है ? इन दोनों बातों का वह ध्यान ही नहीं रखता बल्कि उपादेय को अपने जीवन में यथाशक्ति अपनाता और हेयं का परित्याग करता है । अगर ग्रहण करने योग्य को ग्रहण न किया जाय और छोड़ने योग्य को छोड़ा न जाय तो उन्हें जानने से क्या लाभ है ? रोग से मुक्त होने के लिए औषध को और अपथ्य को जान लेना ही पर्याप्त नहीं है वरन् औषध को सेवन करना और अपथ्य को त्यागना भी आवश्यक है । प्रत्येक सिद्धि को प्राप्त करने के लिए, चाहे वह लौकिक हो अथवा लोकोत्तर, ज्ञान के साथ क्रिया की भी अनिवार्य आवश्यकता होती है। क्रियाहीन ज्ञान और ज्ञानहीन क्रिया से कभी कोई सिद्धि प्राप्त नहीं की जा सकती।
___ किन्तु ग्राह्य क्या है और त्याज्य क्या है, इसका निर्णय अत्यन्त सावधानी के साथ करना चाहिए । बहुत बार लोग धोखा खाते हैं बल्कि सत्य तो यह है कि संसारी जन प्रायः भ्रम में पड़े हुए हैं । वे हेय को उपादेय और उपादेय को हेय समझ कर प्रवृत्ति कर रहे हैं और इसी कारण सुख को प्राप्त करने और दुःखों से छुटकारा पाने की तीन अभिलाषा और घोर प्रयत्न करने पर भी उनका मनोरथ सफल नहीं हो पाता । जीव अनादि काल से संसार में विविध प्रकार की आधि-व्याधि और उपाधियों का शिकार हो रहा है । वह इनसे बचने के लिए जो उपाय करता है, विवेक के अभाव में वे उलटे दुःखप्रद सिद्ध होते हैं। वह बाह्य पदार्थों के संग्रह में सुख देखता है और उनकी ही प्राप्ति में समस्त पुरुषार्थ लगा देता है । किन्तु स्मरण रखना चाहिए कि पर पदार्थों का संयोग सुख का नहीं, दुःख का ही कारण होता है। अतएव बाह्य पदार्थों की ओर से जितनी-जितनी निवृत्ति साधी जाएगी, उतनी ही उतनी शान्ति एवं निराकुलता प्राप्त हो सकेगी।
गृहस्थ आनन्द ने प्रभु के चरणों में बैठकर हेय और उपादेय की वास्तविक जानकारी प्राप्त की । यदि किसी साधारण छदमस्थ से उन्हें जानता तो उसमें कमी रह सकती थी । भ्रम या विपर्यास भी हो सकता था । किन्तु भगवान महावीर से हेय उपादेय का विवेक प्राप्त करने में कमी या विपर्यास होने की गुंजाइश नहीं थी।
विक्षेप के सभी कारण छोड़ने योग्य होते हैं । अच्छा कपड़ा पहनने पर भी उसमें मल लग जाता है। समझादार व्यक्ति मल को उपादेय नहीं मानता, अतएव उस