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आध्यात्मिक आलोक हमारे ऋषि महर्षियों ने शास्त्रों में लौकिक और लोकोत्तर धर्मो का विस्तार से वर्णन किया है, जिसके आधार पर ग्राम्यजीवन-पद्धत्ति की एक अत्यन्त वैज्ञानिक राष्ट्रीय जीवन पद्धति का विकास इस देश में हुआ । हजारों लाखों वर्षों से इस पद्धति ने इस देश को सुखी एवं समृद्धिशाली बनाये रखा । दीर्घकाल तक होते रहे विदेशी आक्रमणों का भी इस जीवन पद्धति पर कोई असर नहीं पड़ा । पर कालान्तर में अंग्रेजी शासन काल में यह जीवन पद्धति छिन्न-भिन्न हो गई । उसी अंग्रेजी शासन काल में देश पर थोपी गई अंग्रेजी भाषा, पाश्चात्य रहन-सहन एवं चिन्तन ने स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद उसे और भी छिन्न-भिन्न कर दिया । उस जीवन पद्धति को आधार रूप से पुनः देश में स्थापित करना है । धर्म प्रसार एवं स्वस्थ व्यक्ति, समाज एवं देश के नव निर्माण के लिये यह अत्यन्त आवश्यक है । इसी को दृष्टि में रखकर शास्त्राकारों ने दस प्रकार के लौकिक धर्म भी बतलाये हैं । ठाणांग सूत्र में इसका विस्तृत विवरण है ।*
आज न केवल दवाइयां ही वरन् दूसरी बहुत-सी वस्तुएं भी पशु-पक्षियों की हत्या करके निर्मित की जाती हैं । नरम चमड़े के नाना प्रकार के बैग, जूते आदि जीवित पशुओं का चमड़ा उतार कर उससे बनाये जाते हैं । यह कितनी भीषण क्रूरता है, शौकीन लोग ऐसी चीजों का उपयोग करके घोर हत्या के पाप के भागी बनते हैं । जीवन का ऐसा कोई कार्य नहीं जो ऐसी हिंसाजनित वस्तुओं के बिना न चल सके। अतएव ऐसी हिंसा को निरर्थक हिंसा की कोटि में सम्मिलित किया गया है। विवेकशील व्यक्ति सदैव इस प्रकार की हिंसा से बचेगा।
जैसे बूंद-बूंद पानी निकालने से बड़े से बड़े जलाशय का भी पानी खत्म हो जाता है, उसी प्रकार भोगोपभोग पर नियन्त्रण करते-करते हिंसा को समाप्त किया जा सकता है । अतएव मनुष्य को चाहिए कि वह अपनी इच्छाओं को वश में रखे और आवश्यकताओं का अतिरेक न होने दे । आवश्यकताओं के बढ़ जाने से वांछित वस्तु न मिलने पर वैयक्तिक तथा सामूहिक संघर्ष बढ़ता है।
सभी देशों में साधारणतया जीवन-निर्वाह के योग्य सामग्री उपलब्ध रहती है किन्तु जब भोगोपभोग की वृत्ति का अतिरेक होता है तब उसकी पूर्ति के लिए वह
*इस विषयक ग्रन्थ रूप में विवेचन जैनाचार्य जवाहरलालजी महाराज के व्याख्यानों पर आधारित "धर्म-व्याख्या" में विस्तार से किया गया है । जिज्ञासु पाठक उसे भी पढ़ें-उस पर चिन्तन, मनन व आचरण करें । इसी सन्दर्भ में महात्मा गांधी के विचार भी इससे बड़ा साम्य रखते हैं । सन्दर्भ ग्रन्थ देखें-'मेरे सपनों का भारत' नवम्बर, '८० की आवृत्ति-प्रकाशक, नवजीवन प्रकाशन मन्दिर, अहमदाबाद पृष्ठ १०८ से १७६ । (सम्पादक)