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आध्यात्मिक आलोक
511 सहस्रों ग्रन्थों को नष्ट होने से बचाया है। किन्तु आज जैनों में भी पहले के समान भीतरी और बाहरी शास्त्र संरक्षण का भाव नहीं दीख पड़ता । यह स्थिति चिन्तनीय
है।
श्रुत के विनय चार हैं, जो इस प्रकार हैं(9) सूत्र की वाचना करना । (२) सूत्र की अर्थ के साथ वाचना करना। (२) हित रूप वाचना करना। (3) श्रुत के कल्याण रूप का चिन्तन-मनन करना।
आज जैन समाज को श्रुत के प्रचार और प्रसार की ओर बहुत ध्यान देने की आवश्यकता है । जैन शास्त्रों में जो उच्चकोटि का, तर्क-विज्ञान सम्मत और कल्याणकारी तत्वज्ञान निहित है, उसका परिचय बहुत कम लोगों को है। शास्त्रों के लोकभाषाओं में अनुवाद भी पूरे उपलब्ध नहीं हैं। आधुनिक ढंग के सुन्दर मूल-प्रकाशन भी नहीं मिलते हैं। जिज्ञासुजनों की प्यास बुझाने की पर्याप्त सामग्री हम प्रस्तुत नहीं कर सके हैं। यह खेद की बात है। इतने सुन्दर और समृद्ध साहित्य को भी हम आज उचित तरीके से लोगों के हाथों में न पहुंचा सकें तो हमारी ज्ञानाराधना ही क्या हुई।
ज्ञानपंचमी के इस पर्व पर आपको निश्चय करना चाहिये कि हम अपनी पूर्व सचित विपुल ज्ञाननिधि को जगत् में फैलायेगे, स्वयं ज्ञान के अपूर्व आलोक में विचरण करेंगे और दूसरों को आलोक में लाने का प्रयत्न करेंगे। आप ऐसा करेंगे तो पूर्वज महापुरुषों के ऋण से मुक्त होंगे और 'स्व'-'पर' के परम कल्याण के भागी बनेगे ।