Book Title: Aadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Author(s): Hastimal Maharaj, Shashikant Jha
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 575
________________ आध्यात्मिक आलोक 567 शनैः शनैः समूल नष्ट हो जाता है । जब यह स्थिति उत्पन्न होती है तो आत्मा अपनी शुद्ध निर्विकार दशा को प्राप्त करके परमात्मपद प्राप्त कर लेती है, जिसे मुक्तदशा, सिद्धावस्था या शुद्धावस्था भी कह सकते हैं। इस विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि जीवन में संयम एवं तप की साधना अत्यन्त उपयोगी है | जो चाहता है कि मेरा जीवन नियन्त्रित हो, मर्यादित हो, उच्छंखल न हो, उसे अपने जीवन को संयत बनाने का प्रयास करना चाहिए । तीर्थंकर भगवन्तों ने मानव-मात्र की सुविधा के लिए, उसकी परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए साधना की दो श्रेणियाँ या दो स्तर नियत किये हैं। (9) सागार साधना या गृहस्थधर्म और (२) अनगार साधना या मुनिधर्म । अनगार धर्म का साधक वही गृहत्यागी हो सकता है जिसने सांसारिक मोह-ममता का परित्याग कर दिया है, जो पूर्ण त्याग के कंटकाकीर्ण पथ पर चलने का संकल्प कर चुका है, जो परिग्रहों और उपसर्गों के सामने सीना तान कर स्थिर खड़ा रह सकता है और जिसके अन्तःकरण में प्राणीमात्र के प्रति करुणा का भाव जागृत हो चुका है । यह साधना कठोर साधना है । विरल सत्वशाली ही वास्तविक रूप से इस पथ पर चल पाते हैं । सभी कालों और युगों में ऐसे साधकों की संख्या कम रही है, परन्तु संख्या की दृष्टि से कम होने पर भी इन्होंने अपनी पूजनीयता, त्याग और तप की अमिट छाप मानव समाज पर अंकित की है। इन अल्पसंख्यक साधकों ने स्वर्ग के देवों को भी प्रभावित किया है । साहित्य, संस्कृति और तत्त्वज्ञान के क्षेत्र में ये ही साधक प्रधान रहे हैं और मानवजाति के नैतिक एवं धार्मिक धरातल को इन्होंने सदा ऊँचा उठाए रखा है। जो अनगार या साधु के धर्म को अपना सकने की स्थिति में नहीं होते, वे आगार धर्म या श्रावक धर्म का पालन कर सकते हैं । आनन्द ने अपने जीवन को निश्चित रूप से प्रभु महावीर के चरणों में समर्पित कर दिया । उसने निवेदन किया-"मैंने वीतरागों का मार्ग ग्रहण किया है, अब मैं सराग मार्ग का त्याग करता हूँ। मैं धर्मभाव से सराग देवों की उपासना नहीं करूंगा। मैं सच्चे संयमशील त्यागियों की वन्दना के लिये प्रतिज्ञाबद्ध होता है। जो साधक अपने जीवन में साधना करते-करते, मतिवपरीत्य से पथ से विचलित हो जाते हैं अथवा जो संयमहीन होकर भी अपने को संयमी प्रदर्शित और घोषित करते हैं, उन्हें मैं वन्दन-नमन नहीं करूंगा।" . आनन्द ने संकल्प किया-"मैं वीतरागवाणी पर अटलश्रद्धा रखूगा और शास्त्रों के अर्थ को सही रूप में समझ कर उसे क्रियान्वित करने का प्रयत्न करूंगा।"

Loading...

Page Navigation
1 ... 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599