Book Title: Aadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Author(s): Hastimal Maharaj, Shashikant Jha
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 576
________________ 568 आध्यात्मिक आलोक यदि शास्त्र का अर्थ अपने मन से खींचतान कर लगाया गया तो वह आत्मघातक होगा | उसके मर्म को समझने में बाधा उपस्थित होगी । शास्त्र का अध्ययन तटस्थ दृष्टि रखकर किया जाना चाहिए, अपना विशिष्ट दृष्टिकोण रखकर नहीं । जब पहले से कोई दृष्टि निश्चित करके शास्त्र को उसके समर्थन के लिए पढ़ा जाता है तो उसका अर्थ भी उसी ढंग से किया जाता है । कुरीतियों, कुमार्गो और मिथ्याडम्बरों को एवं मान्यताभेदों को जो प्रश्रय मिला है, उसका एक कारण शास्त्रों का गलत और मनमाना अर्थ लगाना भी है । ऐसी स्थिति में शास्त्र शस्त्र का रूप ले लेता है । अर्थ करते समय प्रसंग आदि कई बातों का ध्यान रखना पड़ता है। कोई सज्जन भोजन करने बैठे । उन्होंने अपने सेवक से कहा-'सैन्धवं : आनय ।' वह सेवक घोड़ा ले आया, भोजन का समय था फिर भी वह 'सैन्धव' मंगाने पर घोड़ा लाया । खा-पीकर तैयार हो जाने के पश्चात् कहीं बाहर जाने की तैयारी करके पुनः उन्होंने कहा-"सैन्धवं आनय ।' उस समय सेवक नमक ले आया । यद्यपि सैन्धव का अर्थ घोड़ा भी है और नमक भी, कोष के अनुसार दोनों अर्थ सही हैं । फिर भी सेवक ने प्रसंग के अनुकूल अर्थ न करके अपनी मूर्खता का परिचय दिया । उसे भोजन करते समय 'सैन्धव' का अर्थ 'नमक और यात्रा के प्रसंग में 'घोड़ा' अर्थ समझना चाहिए । यही प्रसंगानुकूल सही अर्थ है । ऊट-पटांग अथवा अपने दुराग्रह के अनुकूल अर्थ लगाने से महर्षियों ने जो शास्त्र रचना की है, उसका समीचीन अर्थ समझ में नहीं आ सकता । __ आनन्द ने अपरिग्रही त्यागी सन्तों को चौदह प्रकार का निर्दोष दान देने का . संकल्प किया, क्योंकि आरम्भ और परिग्रह के त्यागी साधु दान के सर्वोत्तम पात्र हैं। उसने जिन वस्तुओं का दान देने का निश्चय किया, वे इस प्रकार हैं- (१) अशन (२) पान (६) खाद्य-पक्वान्न आदि () स्वाद्य-मुखवास चूर्ण आदि (4) वस्त्र (८) पात्र (७) कम्बल (८) रजोहरण (९) पीठ चौकी बाजौट (१०) पाट (११) औषध-सोंठ, लवंग, कालीमिर्च आदि (१२) भैषज्य बनी बनाई दवाई (१३) शय्या मकान और (१४) संस्तारक-पराल आदि। ___ रजोहरण पाँव पोंछने का वस्त्र है, जो धूल साफ करने के काम आता है जिससे कि सचित्त जीवादि की विराधना न हो । शय्या मकान के अर्थ में रूढ़ हो गया है । इसका दूसरा अर्थ है बिछाकर सोने का उपकरण पट्टा आदि । पैरों को समेट कर सोने के लिए करीब अढ़ाई हाथ लम्बे बिछौने को 'संथारा-संस्तारक' कहते हैं। प्रमाद की वृद्धि न हो, ऐसा सोचकर साधक सिमट कर सोता है, । इससे नींद भी

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