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आध्यात्मिक आलोक __ आज देश में युद्ध का वातावरण होने से संकट का काल है, उसी प्रकार धार्मिक दृष्टि से भी यह संकटकाल है | आज का मानव भौतिक वस्तुओं और आवश्यकताओं में इतना लिप्त हो गया है कि वह धर्म की सुध भूल रहा है । ऐसे समय में धर्मप्रिय लोगों को विशेष रूप से सजग होना चाहिए । साक्षरता के इस युग में अन्यान्य विषयों को पढ़ने की रुचि यदि धर्मशास्त्र पठन रुचि में बदल जाय तो कुछ कमियाँ दूर हो जायँ । आज तो स्थिति ऐसी है कि अध्यात्म साधना के लिए समय निकालना लोगों को कठिन प्रतीत हो रहा है यदि लगन वाले लोग इस ओर ध्यान दें तो बड़ा लाभ होगा | धर्म के प्रति रुचि जगाने के लिए ऐसे व्यक्तियों की सेवा अपेक्षित है । आध्यात्मिक-संगठन के निर्माण के लिए तरुणों को तैयार किया. जाना चाहिए।
अजमेर में एक मियांसाहब प्रवचन सुनने आया करते थे। उन्होंने बतलाया कि नवजवानों में इबादत करने की रुचि घट रही है । इबादत करने नहीं आने वाले नवयुवकों की तालिका बनानी पड़ रही है । इससे कुछ लाभ हुआ है । इबादत करने वालों की संख्या में कुछ वृद्धि हुई है। किन्तु आप लोग ऐसा प्रयास कहां करते हैं? महाजनों को तो जन्म से ही अर्थ की पूंटी पिलाई जाती है । पचहत्तर वर्ष के वृद्ध भी अर्थ-संचय में संलग्न रहते हैं। जिन लोगों ने अर्थ को ही जीवन का सर्वस्व या परमाराध्य मान लिया है और जिनका यह संस्कार पक्का हो गया है, उनके विषय में क्या कहा जाय ? मगर नयी पीढ़ी को अर्थ की पूंटी से कुछ हटा कर धर्म की घंटी दी जाय तो उनका और शासन का भला होगा । __ . गृहस्थ प्रवृत्ति और निवृत्ति दोनों की साधना कर सकता है । वृद्धावस्था में . ईश्वर-भजन में अधिक समय व्यतीत हो, इस परम्परा को पुनः जीवित करने की आवश्यकता है | नयी पीढ़ी के जीवन का मोड़ बदलना आवश्यक है । श्रावकवर्ग यदि श्रुतसेवा के मार्ग को अपना लें तो वह अपने धर्म का पालन करता हुआ. श्रमणों को भी प्रेरणा दे सकता है ।
स्वाध्याय की ज्योति घर-घर में फैले, लोगों का अज्ञान दूर हो, वे प्रकाश में आएं और आत्मा के श्रेय में लगें, यही सैलाना-वासियों को मेरा सन्देश है ।