Book Title: Aadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Author(s): Hastimal Maharaj, Shashikant Jha
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 596
________________ 588 आध्यात्मिक आलोक मृत्युदण्ड दिया जा रहा है । राजा क्रुद्ध भी हो गया तो प्राणनाश से अधिक क्या करेगा ? सो वह तो कर ही रहा है । संभव है हमें अपनी सफाई पेश करने का अवसर मिल जाय ।" इस प्रकार विचार कर साधु ने कहा-"राजन् ! आप श्रावक होकर भी क्यों हम निरपराध साधुओं के प्राण ले रहे हैं ?" । राजा को अपनी बात समझाने का अवसर मिल गया । उसने उत्तर दिया-"कौन जाने आप लोग साधु हैं अथवा साधु, के वेष में चोर हैं ? आप अपने को साधु कहते हैं मगर आपके कथन पर कैसे विश्वास किया जा सकता है ? जब आप लोगों को आपस में ही एक-दूसरे पर विश्वास नहीं, आपमें से कोई किसी को निश्चित रूप से साधु नहीं मानता, फिर हम कैसे आपको साधु मान लें ? अगर आप एक-दूसरे को साधु समझते होते तो परस्पर वन्दना व्यवहार करते ।" राजा के इतना कहते ही साधुओं की बुद्धि ठिकाने आ गई । उन्होंने अपनी भूल के लिए पश्चात्ताप किया । ___जब शासन में किसी प्रकार का विसंवाद उत्पन्न हो और शासन का अपवाद होता हो तो श्रावक ढाल बन जाता है और परिस्थिति को सुधारने का काम करता है। भीतर में वह कान पकड़े तो भी कोई बुरा नहीं मानता । साधुगण राजा बलभद्र से क्षमायाचना करके गुरुचरणों में जा पहुंचे। वीर निर्वाण सम्वत् २१५ में स्थूलभद्र स्वर्गधाम सिधारे । इन्हीं महामुनि स्थूलभद्र की भ्रताराधना का सुफल हम आज भोग रहे हैं । हमें इस मंगलमय जीवन के चिन्तन का अवसर मिला, यह हमारे कल्याण का कारण वनगा । वन्धुओ । आपके समक्ष जो आदर्श उपस्थित किए गए हैं, वे आपके पथ-प्रदर्शक बन सकते हैं। आप इनसे प्रेरणा लेते रहेगे तो आपका जीवन कल्याणमय वन जाएगा । स्वाध्याय के सम्बन्ध में पर्याप्त प्रकाश डाला गया है । आशा करता हूँ कि आप स्वाध्याय की धारा को टूटने नहीं देगे । उपाश्रय रूपी विद्यालय में अध्यापक की छड़ी नहीं घूमेगी, फिर भी आप लोग स्वयंचालित अस्त्र के समान चलते रहिए । इन शब्दों के साथ मैं आह्वान करता हूँ. कि भगवान् महावीर की मंगलमयो वालों को हृदय में धारण कर स्व-पर एवं लौकिक-लोकोत्तरं कल्याण के भागी बनें।

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