Book Title: Aadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Author(s): Hastimal Maharaj, Shashikant Jha
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 580
________________ 572 आध्यात्मिक आलोक सुन्दर-स्वस्थ व प्रकृति के अनुकूल होगा तो हम साधु-साध्वी वर्ग का स्वास्थ्य भी सुन्दर व सही रहेगा क्योंकि यह साधु-साध्वी वर्ग भी तो खान-पान के मामले में गृहस्थ वर्ग पर ही पूर्णतः निर्भर है। ___ कहा भी है - जैसा खावें अन्न वैसा होवे मन' इस दृष्टि से शुद्ध-सात्विक सादा शाकाहारी भोजन जो प्रकृति के अनुकूल हो हित-मित एवं परिमित हो वही उत्तम है । ऐसा करने से अधिकाधिक स्वास्थ्य की रक्षा हो सकेगी । इसे समझना और तदनुकूल आचरण करना आज के समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है। हम पश्चिम के खान-पान, रहन-सहन, आचार-विचार के अन्धानुकरण से बचें। इसी में हम सब का हित निहित है । धर्म साधना के लिये भी शरीर का स्वस्थ रहना आवश्यक है। आज के प्राकृतिक चिकित्सकों ने जैनियों के इस द्रव्य-परिमाण के महत्त्व को समझकर अपने सतत् परीक्षणों आदि से यहाँ तक प्रतिपादित कर दिया है कि केवल मात्र हाथ की घट्टी से पिसे चोकरदार गेहूं अथवा जौ अथवा गेहूँ-जौचने की मिश्रित एक मात्र मोटी रोटी को बिना किसी सागचटनी आदि के सहारे के अकेली को पूरी तरह चबा चबाकर लगातार साल भर या छ: माह तक भी खाते रहने मात्र से कैसी से कैसी बीमारी से व्यक्ति छुटकारा पाकर पूर्ण स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकता है कितनी सरल एवं सस्ती चिकित्सा की खोज इन लोगों ने कर ली है।* ___ अनेक प्रकार के दुर्व्यसनों ने आज मनुष्य को बुरी तरह घेर रखा है । कैंसर जैसा असाध्य रोग दुर्व्यसनों की बदौलत ही उत्पन्न होता है और वह प्रायः प्राण लेकर ही रहता है । अमेरिका आदि में जो शोध हुई है, उससे स्पष्ट है कि धूम्रपान इस रोग का प्रधान कारण है । मगर यह जान कर भी लोग सिगरेट और बीड़ी पीना नहीं छोड़ते । उन्हें मर जाना मंजूर है मगर दुर्व्यसन से बचना मंजूर नहीं | यह मनुष्य के विवेक का दीवाला नहीं तो क्या है । क्या इसी बूते पर वह समस्त प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ होने का दावा करता है ? प्राप्त विवेकबुद्धि का इस प्रकार दुरुपयोग करना अपने विनाश को आमन्त्रित करना नहीं तो क्या है ? लोंग, सोंठ आदि चीजें औषध कहलाती हैं । तुलसी के पत्ते भी औषध में सम्मिलित हैं । तुलसी का पौधा घर में लगाने का प्रधान उद्देश्य स्वास्थ्य लाभ ही है। . 'इस सम्बन्ध में प्रसिद्ध प्राकृतिक चिकित्सक श्री जानकी शरण वर्मा द्वारा लिखित एवं भारती भंडार, लोडर प्रेस, इलाहाबाद द्वारा प्रकाशित पुस्तक "रोगों की अचूक (प्राकृतिक) चिकित्सा" द्रष्टव्य है । (सम्पादक)

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