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आध्यात्मिक आलोक सकता । जो मनुष्य अपनी मन्जिल तक जाने के मार्ग को जानता है, दूसरों को ' बतला भी देता है, मगर स्वयं एक कदम भी नहीं उठाता, उस ओर चलने का कष्ट नहीं उठाना चाहता, वह क्या जीवनपर्यन्त भी अपनी मन्जिल पर पहुँच सकेगा ? कदापि नहीं । ज्ञान पथ को आलोकित कर सकता है मगर मन्जिल तक पहुँचा नहीं सकता।
एक दीर्घकाल का रोगी है । अनेकों चिकित्सकों के पास पहुँच कर उसने रोग की औषध पूछी है । उन औषधों को वह भलीभांति समझ गया है, मगर जब तक औषध का सेवन नहीं करेगा, तब तक क्या ज्ञान मात्र से वह स्वास्थ्य लाभ कर लेगा ?
इससे भलीभांति सिद्ध है कि कोरा ज्ञान, क्रिया के अभाव में कार्यसाधक नहीं होता । इसी प्रकार ज्ञानहीन क्रिया भी फलप्रद नहीं होती । एक मनुष्य अपनी मन्जिल पर पहुँचने के लिए चल रहा है, चल रहा है और चलता ही जा रहा है । मगर उसे पता नहीं कि किस मार्ग से चलने पर मन्जिल तक पहुँच पाएगा । ऐसी दशा में उसका चलना किस काम आएगा ? अज्ञान के कारण संभव है उसका चलना उसकी मन्जिल को और अधिक दूर कर दे । मन्जिल तक पहुँचने के लिए, मंजिल के विरुद्ध दिशा में चलने वाला कब मन्जिल तक पहुँच सकेगा ? रोगी रोग के शमन के लिए औषध को जानने का प्रयत्न न करे और अनजाने कुछ भी अंटसंट खाता रहे तो क्या वह रोग का निवारण करने में समर्थ हो सकेगा ?
जो मनुष्य यह नहीं देखता कि जिसे वह खा रहा है वह गुणकारी है या . हानिकारक, उसे गंभीर परिणाम भुगतना पड़ सकता है । ऐसी स्थिति में कई लोगों को जिन्दगी से हाथ धोना पड़ा है । पदार्थ को न पहचानने तथा गुणदोष को न देखने से भयंकर हानियां होती हैं | नायलोन का कपड़ा पहनकर उसकी तासीर को न जानने के कारण सैकड़ों लोग जल मरे हैं। आए दिन महिलाओं के जल मरने के समाचार पढ़ने में आते रहते हैं । वस्तु अमुक गुण-धर्मवाली है, यह ख्याल रहे तो मनुष्य हानि से बच सकता है | आचार्य हेमंचन्द्र ने अपने योगशास्त्र में कहा है
स्वयं परेण वा ज्ञातं फलमद्याद्विशारदः । .
निषिद्धे विषफले वा, मा भूतस्य प्रवर्तनम् ।। ' अर्थात् बुद्धिमान मनुष्य को उसी फल का भक्षण करना चाहिए जिसे वह स्वयं जानता हो या दूसरा कोई जानता हो, जिससे कि निषिद्ध या विषैला फल खाने में न आ जाए । निषिद्ध फल खाने से व्रतभंग होता है और विषाक्त फल खाने से प्राणहानि हो सकती है।