Book Title: Aadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Author(s): Hastimal Maharaj, Shashikant Jha
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 587
________________ आध्यात्मिक आलोक 579 __आज केवलज्ञानी इस क्षेत्र में विद्यमान नहीं हैं, श्रुतकेवली भी नहीं हैं । किन्तु महापुरुषों की श्रुताराधना के फलस्वरूप उनकी वाणी का कुछ अंश हमें सुलभ है । इसीके द्वारा हम उनकी परोक्ष उपासना का लाभ प्राप्त कर सकते हैं । इसके लिए स्वाध्याय करना आवश्यक है । स्वाध्याय चित्त की स्थिरता और पवित्रता के लिए भी सर्वोत्तम उपाय है। जीवन को ऊँचा उठाने का अमोघ उपाय श्रुताराधन है । यदि व्रत विकृत होता हो, उसमें कमजोरी आ रही हो तो स्वाध्याय की शरण लेनी चाहिए । स्वाध्याय से बल की वृद्धि होगी, आनन्द की अनुभूति और नूतन ज्योति की प्राप्ति होगी। __ आनन्द ने साधना द्वारा पन्द्रह वर्ष के पश्चात् साधुजीवन की भूमिका प्राप्त कर ली । वास्तव में साधना एक अनमोल मणि है जिससे मानव की आत्मिक दरिद्रता दूर की जा सकती है । साधना के क्रम और सही पथ को विस्मृत न किया जाय और उसे रूढ़िमात्र न बना दिया जाय । साधना सजीव हो, प्राणवान हो और विवेक की पृष्ठभूमि में की जाय तभी उससे वास्तविक लाभ उठाया जा सकता है । अन्यथा मणिधर होते हुए भी अन्धकार में भटकने के समान होगा । जब साधना के द्वारा आत्मा सुसंस्कृत बनती है तो उसमें ज्ञान की ज्योति जागृत हो जाती है, जीवन ऊँचा उठता है और ऐसा व्यक्ति अपने प्रभाव एवं आदर्श से समाज को भी ऊँचा उठा देता है। जीवमात्र में राग और द्वेष के जो गहरे संस्कार पड़े हैं उनके प्रभाव से किसी वस्तु को प्रेम की दृष्टि से और किसी को द्वेष की दृष्टि से देखा जाता है। जिस वस्तु को एक मनुष्य राग की दृष्टि से देखता है, उसी को दूसरा देष की। दृष्टि से देखता है । भगवान महावीर जैसे वीतराग, निर्मल, निष्कलंक, सर्वहितंकर परम-परमात्मा को भी विपरीत दृष्टि से देखने वाले मिल जाते हैं तो अन्य के विषय में क्या कहा जाय ? विरोधमय दृष्टि से दूसरों की बुराइयाँ तो दिखेंगी पर अच्छाइयां दृष्टिगोचर न होगी | अनादिकाल से मनुष्य स्वार्थ के चक्र में फँसा है । स्वार्थ में थोड़ी ठेस लगने से विरोधी भाव जागृत हो जाते हैं । अतएव आवश्यकता इस बात की है कि हम अपने जीवन में तटस्थता के दृष्टिकोण को विकसित करें। ऐसा करने से किसी भी वस्तु के गुण-दोषों का सही मूल्यांकन किया जा सकता है । लौंकाशाह जैसे व्यक्ति समय पर आगे आए जिन्होंने गृहस्थों के लिए भी श्रुत के अध्ययन का मार्ग खोला । इससे पूर्व बाबा लोगों ने आगम-श्रुत पर

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