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आध्यात्मिक आलोक देखे हैं और उन्हें देख कर मनुष्यों ने अपने मन मैले किये हैं। उनके फलस्वरूप संसार में भटकना पड़ा है । अब यदि जन्म-मरण के बन्धनों से छुटकारा पाना है तो मुक्ति का मेला कर लो।
कबीरदासजी ने भाव की भंग, मरम की काली मिर्च डाल कर पी थी और अपने हृदय में प्रेम की लालिमा उत्पन्न की थी।
आनन्द आदि साधकों ने बन्धन काटने वाले मेले के स्वरूप को समझा । उन्होंने नियम-संयम का नशा लिया । इससे उनका जीवन आनन्दमय बन गया । जीवन के वास्तविक आनन्द को प्राप्त करने के लिए आनन्द के समान ही साधना को अपनाना होगा । इसी में मानव का स्थायी कल्याण है ।