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आध्यात्मिक आलोक
555 भय जब उपस्थित हो जाय तो रोने और किनारा काटने से काम नहीं चल सकता । विपत्ति के समय धीरज नहीं खोना चाहिए । धीरज खो देना अनर्थ का कारण हो जाएगा । इससे विपत्ति शतगुणा भीषण हो जाती है । कहा है
ज्ञानी को दुःख नहीं होता है, ज्ञानी धीरज नहीं खोता है । सद्ग्रन्थ पढ़ो स्वाध्याय करो, मन के अज्ञान को दूर करो।
स्वाध्याय करो स्वाध्याय करो। भ्रान्त विचारों, अधीरता और चंचलता के भावों को दूर करने का उपाय सम्यग्ज्ञान है । ज्ञानी पुरुष संकट के समय धैर्य नहीं खोता और व्यर्थ चिन्ता नहीं करता । अगर दुःख सिर पर आ. पड़े तो हाय-हाय करने से क्या लाभ है ? ज्ञान का बल होने से मनुष्य धीरज से समय काट सकता है । ऐसे ज्ञान की प्राप्ति सत्संग और स्वाध्याय से होती है ।
शुभ कर्म को बढ़ाना पाप को घटाने का कारण हो जाता है | शुभ कर्म से आध्यात्मिक शक्ति का विकास होता है और आध्यात्मिक शक्ति वह शक्ति है जिससे मनुष्य कौटुम्बिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय शक्ति में वृद्धि करता है।
अकसर एक प्रश्न उठता है कि राष्ट्र रक्षा में सन्तसमाज का क्या योगदान है ? ऐसे प्रश्न वही कर सकते हैं जो ऊपर-ऊपर की दृष्टि से विचार करने के आदी हैं । गहराई से राष्ट्रीयता या राष्ट्रहित के सम्बन्ध में विचार करने वालों के मन में ऐसा प्रश्न नहीं उठ सकता । राष्ट्र की रक्षा केवल भौतिक साधनों से होती है, यह समझ घातक है । भौतिक साधन और समृद्धि की प्रचुरता होने पर भी यदि राष्ट्र की आन्तरिक चेतना जागृत नहीं है, राष्ट्र के निवासियों में नैतिकता, उदारता, त्यागवृति और धार्मिक भावना नहीं है तो वह राष्ट्र दापि सुरक्षित नहीं रह सकता । अतएव राष्ट्र की रक्षा उसमें निवास करने वाली प्रग के सद्गुणों पर निर्भर है । जिस देश की प्रजा के आन्तरिक जीवन का स्तर जितना ऊँचा होगा, वह देश उतनी ही अधिक उन्नति कर सकेगा । इसके विपरीत, 'जस देश के निवासी नैतिक दृष्टि से गिरे होग, अधार्मिक होगे, स्वार्थपरायण होगे, वह देश कदापि ऊँचा नहीं उठ सकता । कदाचित् ऐसा कोई देश समृद्ध और शक्तिमा दीख पड़ता हो तो यही मानना होगा कि उसकी समृद्धि और शक्ति सिर्फ ऊपरी है, उसमें स्थायित्व नहीं है । थोड़े ही समय में उसका पतन बालू की दीवाल की तरह हो जाएगा । इस प्रकार देश की असली सुरक्षा उसकी आन्तरिक चेतना की दिव्यता और भव्यता में निहित है । सन्त जन इस चेतना को जागृत करने, जाग्रत रखने और विकसित करने में सदा संलग्न रहते हैं । वे मानव-समाज को अपने सोर्ग हद से ऊपर उठ कर राष्ट्र के