Book Title: Aadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Author(s): Hastimal Maharaj, Shashikant Jha
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 561
________________ आध्यात्मिक आलोक 553 वर विभववन्ध्यतां सुजनभावभाजां नृणाम्, असाधु चरितार्जिता न पुनरुपार्जिता सम्पदः । कृशत्वमपि शोभते सहजमायतौ सुन्दर, विपाकविरसा न तु श्वयथुसम्भवा स्थूलता ।। धन की गरीबी बुरी नहीं है । पर दुष्कृत्यों के द्वारा उपार्जित की गई लक्ष्मी अच्छी नहीं है । परिणाम में सुन्दर स्वाभाविक कृशता में कोई बुराई नहीं है, मगर सूजन के कारण उत्पन्न होने वाली मोटाई श्रेयस्कर नहीं है । मधुमक्खियाँ काट लें और उससे शरीर फूल जाय तो क्या वह खुशी की चीज होगी ? नहीं, शरीर में सुजन आ जाने से चिन्ता होगी और अस्पताल भागना पड़ेगा । यह रोग है। इसी प्रकार अनीति से प्राप्त धन का मोटापन भी रोग है | कृशता शोभा देती है जो सहज है, परन्तु अनुचित मोटापन बीमारी की निशानी है। व्यापारी आदि सभी वर्ग अगर इस नीति को व्यवहार में लावें तो इस संकट के समय में स्वयं को तथा देश को भी निर्भय बना सकेंगे । पाप घटने से दुःख आप ही आप घट जाएँगे । दुःख को घटाने के लिए बाह्य उपाय भी किया जाय किन्तु अन्तरंग को भी सुधारा जाय; इससे दुःख का शीघ्र निकन्दन होगा । यह अनुभूत वाणी है, अटकलपच्चू की बात नहीं है । ___ भारत की आत्मा सांस्कृतिक रूप में उज्ज्वल रही होती तो उसे पदाक्रान्त करने की सामर्थ्य किसी में नहीं होती । देश की पुण्य प्रकृति बढ़ेगी तो पाप घटेगा और पाप घटने से संताप भी अवश्य घटेगा । सिर्फ बाहर के उपायों से सन्ताप नहीं घटता । छल-बल वाले को जल्दी सफलता मिलती दीख पड़ती है, मगर वह ठोस और स्थायी नहीं होती । स्थायी विजय और शान्ति तो सुजन के साथ ही रहेगी। यद्यपि दुर्योधन को तात्कालिक लाभ दीख पड़ा, ऐसा प्रतीत हुआ कि वह सम्राट् बन गया है और युधिष्ठिर धर्म की रट लगाते हुए सर्वस्व गँवा कर जंगलों में भटक रहे हैं, किन्तु अन्तिम परिणाम क्या हुआ? विजय युधिष्ठिर की हुई, कीर्ति युधिष्ठिर को प्राप्त हुई । दुर्योधन के छलबल ने, अन्याय ने उसका और कौरववंश का सर्वनाश कर दिया। भारत अपनी संस्कृति पर सदा अडिग रहेगा । हंस अपनी वृत्ति को नहीं बदलता । वह मानसरोवर में रहता है। वह काक की देखादेखी नहीं करता । काक मानसरोवर के पास यदि पर्वत की चोटी पर बैठ जाय तो भी काक ही रहेगा | कहा है 'स्वर्णाद्रिश्रृंगाग्रमधिष्ठितोऽपि काको वराकः खलु काक एव ।' सुमेरु के शिखर पर बैठा हुआ काक भी आखिर काक ही रहता है ।

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