Book Title: Aadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Author(s): Hastimal Maharaj, Shashikant Jha
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 572
________________ 564 आध्यात्मिक आलोक वहाँ एक सिद्धान्त को आधार मान कर उससे आगे का विचार किया गया है। वहाँ के चिन्तन में एक सिलसिला है, कड़ी है, हालांकि उनका यह चिंतन एकान्त भौतिक रूप में रहा । हमारे देश की आध्यात्मिक साधना को व्यावहारिक रूप मिलने से जीवन में ताकत आ जाती है, और असंभव भी संभव हो जाता है । एक कवि ने कहा है कर लो सामायिक रो साधन, जीवन उज्ज्वल होवेला । तन का मैल हटाने खातिर, नितप्रति न्हावेला । मन पर मल चहुँ ओर जमा है, कैसे धोवेला 11911 सामायिक से जीवन सुधरे, जो अपनावेला । निज सुधार से देश जाति, सुधरी हो जावेला ||२|| गिरत-गिरत प्रतिदिन रस्सी भी, शिला घिसावेला । करत-करत अभ्यास, मोह का जोर मिटावेला ||३|| रस्सी की बार-बार की रगड़ से शिला पर भी निशान पड़ जाते हैं.। 'रसरी आवत जात तें सिल पर परत निशान ।' इसी प्रकार साधना के बल से मनुष्य की, प्रकृति भी घिस सकती है । सामायिक साधना के समय काम-क्रोध आदि विकारों को नित्य 'टच' करो, टांचो और उन्हें अंकुश में लाओ तो धीरे-धीरे वे विकार कम हो जाएगे । अगर प्रतिदिन विकारों पर चोट मारने का काम प्रारंभ किया गया तो जीवन में अवश्य ही मोड़ आएगा । सामायिकसाधना करना अपने घर में रहना है । सामायिक से अलग रहना बेघरबार रहना है । सामायिकसाधना करना आत्मा का घर में आना है । काम-क्रोध आदि विकारों में परिणत होना पराये घर में जाना है । किन्तु साधना के लिए अन्तःकरण को तैयार किया जाना चाहिए । नित्य की साधना बड़ी बलशालिनी होती है। घंटा भर की साधना अगर नहीं हो सकती तो १०-१५ मिनिट श्रुतसाधना ही की : जानी चाहिए । उससे भी शान्ति मिलेगी । मगर साधना में बैठने वालों को सांसारिक प्रपंचों से मन को पृथक् कर लेना चाहिए । चित्त को प्रशान्त और एकाग्र करके साधना करने से अवश्य ही लाभ होगा । अन्तरंग साधना सामायिक के अभ्यास से ही सिद्ध होती है । अगर इस प्रकार से सामायिकसाधना जीवन में अपनाई गई तो इहलोक और परलोक में कल्याण होगा।

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