Book Title: Aadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Author(s): Hastimal Maharaj, Shashikant Jha
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 569
________________ 561 आध्यात्मिक आलोक लिए वे निरन्तर प्रयास कर रहे हैं। मगर दुःखों से मुक्ति मिलती नहीं । कारण स्पष्ट है दुनिया समझती है कि बाह्य पदार्थों को अपने अधिकार में कर लेने से दुःख का अन्त आ जाएगा । मनोहर महल खड़ा हो जाय, सोने चाँदी से तिजोरियाँ भर जाएँ, विशाल परिवार जुट जाए, मोटर हो, विलास की अन्य सामग्री प्रस्तुत हो तो मुझे सुख मिलेगा। इस प्रकार पर-पदार्थों के संयोग में लोग सुख की कल्पना करते हैं। किन्तु ज्ञानी कहते हैं ___ संयोगमूला जीवेन प्राप्ता दुःख परम्परा । संसार के समस्त दुःखों का मूल संयोग है | आत्मभिन्न पदार्थों के साथ सम्बन्ध स्थापित करना ही दुःख का कारण है । अब आप ही सोचिए कि सुःख प्राप्त करने के लिए जो दुःख की सामग्री जुटाता है, उसे सुख की प्राप्ति कैसे हो सकेगी ? जीवित रहने के लिए विष को भक्षण करने वाला पुरुष अगर मूढ़ है तो सुख प्राप्ति के लिए बाह्य पदार्थों की आराधना करने वाला क्या मूढ़ नहीं है ? मगर आपकी समझ में बात कहाँ आ रही है ? आप तो नित्य नये-नये पदार्थों के साथ ममता का संबन्ध जोड़ रहे हैं । यह दुःख को बढ़ाने का प्रयत्न है । इससे सुख की प्राप्ति नहीं होगी । सच्चा सुख आत्मसाधना में है | आध्यात्मिक साधना जितनी-जितनी सबल होती जाएगी, सुख भी उतना ही उतना बढ़ता जाएगा । आर्त और रौद्र वृत्तियों को मिटाना ही शान्ति और मुक्ति का साधन है । शस्त्रविद्या इसमें सफल नहीं होती । शस्त्रविद्या तो रौद्र भाव को बढ़ाने वाली है ज्यों-ज्यों शस्त्रों का निर्माण होता गया, मनुष्य का रौद्र रूप बढ़ता गया । रौद्र रूप की वृद्धि के लिए आज तो शारीरिक बल की आवश्यकता भी नहीं है कमजोर व्यक्ति भी यंत्रों की सहायता से हजारों-लाखों मनुष्यों को मौत के घाट उतार सकता है। शस्त्र प्रयोग तो आखिरी उपाय है । जब अन्य साधन न रह जाय तभी शस्त्र का उपयोग किया जा सकता है। शास्त्र विद्या यह विचारधारा देती है कि शस्त्र विद्या का प्रयोग विवेक को तिलांजलि देकर नहीं किया जाना चाहिए । अन्याय, अत्याचार और दूसरों को गुलाम बनाने के लिए शस्त्र का प्रयोग करना मानवता की । हत्या करना है। आज जो देश अपनी सीमा विस्तार करने के लिए सेना और शस्त्र का प्रयोग करते हैं, दूसरों को गुलाम बनाने के इरादे से अत्याचार करते हैं, वे मानवता के घोर शत्रु हैं और उनका अत्याचार उन्हीं को खा जाएगा, हिटलर का उदाहरण पुराना नहीं पड़ा है। उसकी विस्तारवादी नीति ने ही उसे मार डाला। शास्त्र विद्या यही शिक्षा देती है कि शस्त्र का प्रयोग रक्षण के लिए होना चाहिए, भक्षण के लिए नहीं । सद गृहस्थों को कभी शस्त्र भी संभालना पड़ता है, मगर उस समय भी उसकी वृत्ति सन्तुलित रहती है।

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