Book Title: Aadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Author(s): Hastimal Maharaj, Shashikant Jha
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 568
________________ 560 आध्यात्मिक आलोक . करलो जीवन का उत्थान, करो नित समता रस का पान - नितप्रति हिंसादिक जो करते, त्याग को मान कठिन जो डरते, घड़ी दो कर अभ्यास महान् बनाते जीवन को बलवान् ।। महात्मा लोग आत्म-शान्ति के लिए साधना करते हैं, परन्तु उनकी साधना का फल उन्हीं तक सीमित नहीं रहता । सारा जगत् उस फल से लाभान्वित होता है । भगवान महावीर ने जो उत्कृष्ट साधना की उसका फल सारे संसार को मिला । महापुरुष ऐसे कृपण नहीं होते कि अपनी अनुभूतियों को लुका-छिपा कर रखें और दूसरों को उनसे लाभान्वित न होने दें। उनका अन्तःकरण बहुत विशाल होता है और उसमें दया का महासागर उमड़ता रहता है । अतएव जगत् के दुःखी और अज्ञानान्धकार में ठोकरें खाने वाले जीवों पर अपार करुणा करके वे अपनी साधना जनित अनुभूतियों को जगत् के सामने प्रस्तुत करते हैं । प्रत्येक सत्पुरुष के लिए यही उचित है कि उसके पास जो कुछ भी साधन-सामग्री है, उससे दूसरों को लाभ पहुँचावे । जिसने ज्ञान प्राप्त किया है, वह दूसरों का अज्ञान दूर करे, जिसके पास धन है, उसका कर्तव्य है कि वह निर्धनों, अनाथों एवं आजीविकाहीन जनों की सहायता करे । इस प्रकार अपनी सामग्री से दूसरों को सुख-शान्ति पहुँचाना ही प्राप्त सामग्री का सदुपयोग कहा जा सकता है ।। जैसे कंजूस श्रीमन्त अपने धन का लाभ दूसरों को नहीं देता, अपने समाज और अड़ौस-पड़ोस के लोगों की भी वह सहायता नहीं करता, वह अपनी दुनिया को अपने और अपने परिवार तक ही सीमित समझता है, मानो दूसरों से उसका कोई वास्ता ही नहीं हैं, इसी प्रकार ज्ञानी जनों ने अगर कंजूसी से काम लिया होता तो इस संसार की क्या स्थिति होती ? आज हमें शास्त्रों के रूप में जो महानिधि प्राप्त है, वह कहाँ से प्राप्त होती ? हमें अपने कल्याण का मार्ग कैसे सूझता ? उस दशा में दुनिया की स्थिति कितनी दयनीय और दुःखमय बन गई होती ? मगर ऐसा होता नहीं है उदारहृदय महात्मा अपने आत्मकल्याण में विघ्न डाल कर भी जगत् के जीवों का पथप्रदर्शन करते हैं । वे अपने अनमोल वैभव को दोनों हाथों से लुटाते हैं और मानव-जाति के श्रेय के लिए यत्नशील रहते हैं। तो महात्माओं ने अपनी गहन एवं रहस्यमय अनुभूतियों को भी प्रकाशित किया है । उन्होंने हमें बतलाया है कि आधियों, व्याधियों और उपाधियों से मुक्ति चाहते हो तो आत्मसाधना के पथ पर अग्रसर होओ । दुःख से छुटकारा पाना कौन नहीं चाहता ? मनुष्यों की बात जाने दीजिए, छोटे से छोटे कीट भी दुःख से बचना और सुख प्राप्त करना चाहते हैं । इसी के

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