Book Title: Aadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Author(s): Hastimal Maharaj, Shashikant Jha
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 566
________________ 558 आध्यात्मिक आलोक . ___ बाह्य सुरक्षा आन्तरिक सुरक्षा पर निर्भर है । अगर नागरिक जन अपने कर्तव्य और धर्म से विमुख होते हैं तो सैनिक का साहस, पराक्रम और बलिदान सार्थक नहीं हो सकता । अतएव युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिये भी यह अनिवार्य रूप से आवश्यक है कि प्रजाजन भी अपने जीवन को सँभालें, देश में आन्तरिक शान्ति कायम रखें। जैसे नागरिकों को शस्त्रास्त्र देकर सबल बनाया जाता है, उसी प्रकार उन्हें कर्त्तव्यनिष्ठा, धीरता, सहनशीलता और नैतिकता के द्वारा प्रबल बनाना भी अत्यावश्यक है । इसके अभाव में भीतरी गड़बड़ी हो जायेगी | शस्त्रशिक्षा की अपेक्षा शास्त्रशिक्षा का महत्व कम नहीं है । भारतीय संस्कृति में दोनों की हिमायत . की गई है, जो प्रजा दोनों प्रकार की शिक्षा से शिक्षित नहीं, वह जाति, समाज और देश के लिए खतरनाक हो सकती है। नागरिकों में अज्ञान न हो, यह भी देशरक्षा के लिए आवश्यक है । इतिहास से विदित होता है कि कई लोग अज्ञानतावश शत्रुपक्ष में मिल गए । इससे बड़ा खतरा किसी देश के लिए दूसरा क्या हो सकता है ? मानसिक वृत्ति में सन्तुलन लाने वाला शास्त्रशिक्षण है । इससे आन्तरिक जीवन का निर्माण होता है, फिर चाहे वह शासक हो कृषक हो या कुछ अन्य हो। अज्ञानी का अपना विनाश देश के अनिष्ट का भी कारण बनेगा । अतएव आन्तरिक विजय प्राप्त करने के लिए शास्त्रशिक्षा की आवश्यकता है। ___शास्त्रीय शिक्षा में सामायिक साधना का स्थान बहुत ही महत्व का है । सामायिक से अन्तःकरण में विषमता के स्थान पर समता की स्थापना होती है । उसका दूसरा उद्देश्य मानव के अन्तस्तल में धधकती रहने वाली विषय-कषाय की भट्टी को शान्त करना है। ___ सामायिक साधना के सच्चे, गहरे और व्यापक अर्थ को समझा नहीं जा रहा है । प्रतिदिन सामायिक करने वालों में भी अधिकांश जन ऊपरी विधिविधान करके ही सन्तोष मान लेते हैं । वे उस साधना को स्पर्श करने का प्रयत्न नहीं करते । उसे सजीव एवं स्फूर्त रूप प्रदान कर जीवनव्यापी नहीं बनाते । अगर सामायिक साधना हमारे जीवन का प्रेरणास्रोत और मूलमंत्र बन जाए तो उससे अपूर्व लाभ हो सकता है । जीवन में जो भी विषाद, वैषम्य, दैन्य, दारिद्रय, दुःख और अभाव है, उस सब की अमोघ औषध सामायिक है । जिसके अन्तःकरण में समभाव के सुन्दर सुमन. सुवासित होंगे, उसमें वासना की बदबू नहीं रह सकती । जिसका जीवन साम्यभाव के सौम्य आलोक से जगमगाता होगा, वह अज्ञान, आकुलता एवं चित्त विक्षेप के अन्धकार में नहीं भटकेगा।

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