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मानसिक सन्तुलन जीवन को उन्नत बनाने तथा आध्यात्मिक बल को बढ़ाने के लिए महावीर स्वामी ने जिस साधना का संदेश दिया है, आनन्द श्रमणोपासक के माध्यम से उसका निरूपण किया गया है । उसका उद्देश्य यही है कि उस साधना का विकास किया जाय और अपने आपको ऊँचा उठाया जाय ।
__ आज देश की स्थिति बड़ी विषम है । युद्ध की परिस्थिति बनी है। भारतीय सैनिक अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बलि चढ़ा रहे हैं। शत्रु-देश सिर ऊँचा उठा रहे हैं और देश की स्वाधीनता तथा सुरक्षा को जोखिम.में डालने का प्रयत्न कर रहे हैं। ऐसे समय में अध्यात्म की चर्चा कहाँ तक उपयुक्त है ? इस समय तो देशवासियों में वीरता जगाना चाहिए और आक्रान्ताओं को देश की सीमा के बाहर भगा देने की प्रेरणा करनी चाहिए। इस अवसर पर धर्म की बात करना असामयिक है । कइयों के हृदय में इस प्रकार के विचार उत्पन्न हो सकते हैं।
मगर मैं कहना चाहूँगा कि अगर ऐसे विचार आपके चित्त में आते हैं तो समझना चाहिए कि आपने गंभीर विचार नहीं किया है। देश और समाज की रक्षा के दो उपाय होते हैं-बाह्यरक्षा और आन्तरिक रक्षा ।।
देश पर आक्रमण होने की स्थिति में, आक्रान्ता को भगाने के लिए सैनिक बल का प्रयोग करना, शस्त्रों का निर्माण करना, उद्योगधन्धों को बढ़ाना आदि कार्य बाह्यरक्षा में सम्मिलित हैं । देशवासियों में ऐसी नैतिक भावना जाग्रत करना कि वे धीरज और साहस रखें, एकता को कायम रखें, राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि स्थान दें, जीवन को इतना संयममय बनाएँ कि अल्प से अल्प सामग्री से अपना काम चला सकें, लोभ-लालच के वशीभूत होकर स्वार्थ साधन में लिप्त न हों, विलास का परित्याग कर त्यागभावना की वृद्धि करें और प्रत्येक अनैतिक एवं अधार्मिक कार्य से बचते रहें, यह देश की आन्तरिक सुरक्षा है।