Book Title: Aadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Author(s): Hastimal Maharaj, Shashikant Jha
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 560
________________ 552 आध्यात्मिक आलोक .. जागरण आ जाए तो देश के लिए अत्यन्त हितकर होगा । खास तौर से शासकवर्ग को सोचना है कि अनैतिक आचरण करने से और नैतिकता के प्रति उपेक्षा भाव रखने से क्या अनीति को बढ़ावा नहीं मिलेगा ? जनता चाहे जिस तरह से धर्नाजन । करे, सरकार का खजाना भरना चाहिए; यह नीति आगे चलकर देश को रसातल में नहीं पहुँचा देगी ? क्या यह दुर्नीति सरकार के लिए ही सिरदर्द नहीं बन जाएगी? आज नैतिकता की भावना को सजीव और साकार बनाना है यही सच्ची देशसेवा है। दिखावा करने का समय व्यतीत हो गया । भोग-विलास की वेला बीत गई है । देशवासियो। अपने देश के महापुरुषों के जीवन, आदेश और उपदेश को याद करो। जीवन को संयममय और सादगीपूर्ण बनाओ । गृहस्थों के व्रतों एवं नियमों को पालो। खाद्यान्न की कमी है तो महीने में दो चार उपवास करने का नियम ग्रहण करो। . धर्मशास्त्र का विधान है कि प्रत्येक गृहस्थ को अष्टमी, चतुर्दशी, पूर्णिमा और अमावस्या या अपनी पसंद की किन्हीं भी तिथियों में अनशन करना चाहिए । यह धार्मिक नियम आज देश की सबसे जटिल समस्या का सरलता से समाधान कर सकता है । खाद्यान्न की कमी मांसभक्षण से पूरी करने की प्रेरणा देश को भारी खतरे में डाल देगी । एक बार मनुष्य के हृदय में जब निर्दयता और क्रूरता जाग उठती है. तो वह दूसरे मनुष्यों के प्रति भी सदय नहीं रह सकता । अगर हम चाहते हैं कि मनुष्य-मनुष्य का घातक न बने तो हमारा कर्तव्य है कि हम उसके हृदय में करुणाभाव जागृत करें और करुणाभाव की 'जागृति के लिए प्राणिमात्र के प्रति दयावान् बनने के सिवाय अन्य कोई चारा नहीं है । जो पशुओं की हत्या करने में संकोच नहीं करेगा या मांसभक्षण करेगा, वह मनुष्यों के प्रति भी करुणाशील नहीं रह सकेगा । अतएव खाद्य-समस्या का समाधान धर्म के अनुकूल ही होना चाहिए । परिमित दिनों का अनशन (उपवास) उसका उत्तम उपाय है। . यदि नागरिकों के व्यवहार में प्रामाणिकता आ जाय तो सरकारी कर्मचारियों की संख्या में भी कमी हो जाय और लाखों करोड़ों का खर्च बच जाए और . परिणामस्वरूप कर का भार भी कम हो जाय । शासनतंत्र को भी चाहिए कि वह जनता में प्रामाणिकता के प्रोत्साहन के लिए समुचित व्यवस्था करे । विविध प्रकार के व्यवसायी आज जो मिलावट कर रहे हैं उसके विषय में उन्हें मार्गदर्शन किया जाना चाहिए, जिससे कि वे वैसा न करें । व्यवसायियों को भी सन्मार्ग ग्रहण करना चाहिए। इस प्रकार प्रजा और शासकवर्ग के सम्मिलित प्रयास से प्रामाणिकता की सुदृढ़ भूमिका तैयार हो सकती है । इससे भ्रष्टाचार, घूसखोरी, मिलावट, काला बाजार आदि बुराइयाँ, जो देश के स्वास्थ्य के लिए क्षय के कीटाणुओं के समान हैं, नष्ट की जा सकती हैं । एक कवि ने कहा है

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