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आध्यात्मिक आलोक कहानियाँ सुनी जाती हैं परन्तु भारतीय चोरी नहीं करते । यात्रियों को इस बात पर विश्वास नहीं हुआ परीक्षा के लिए वे अपनी गठरी एक कुएँ के पास छोड़ कर आगे बढ़ गए । कोई राहगीर अपनी गठरी भूल गया है, यह कह कर लोगों ने गठरी राजकर्मचारियों के सुपुर्द कर दी । एक घुड़सवार राजकर्मचारी उस गठरी को लेकर चला और उन यात्रियों को सौंप दी। उसने यात्रियों को सावधान किया कि यात्रा में अपना सामान सँभाल कर रखना चाहिए | ताकि हवा-वर्षा-धूप आदि से अथवा ' इधर-उधर बिखर कर वह नष्ट न हो जाय । यात्री भारत की इस उच्च-कोटि की प्रामाणिकता को देखकर अत्यन्त प्रभावित हुए।
आज सारा नक्शा बदल गया है । चोरी का माल कदाचित् मिल जाए तो माल के असली मालिक को उसे हस्तगत करने में भी कठिनाई होती है, पुलिस में पंचनामा आदि कई झंझटें करनी पड़ती हैं। लोगों को एक-दूसरे का विश्वास नहीं रहा है । यात्रा के समय जेबों में पैसा सुरक्षित नहीं रहता । प्रत्येक वर्ग में अप्रामाणिकता बढ़ गई है । रिश्वत, चोरबाजारी आदि बुराइयाँ, जो देश को अधःपतन की ओर ले जाने वाली हैं, बढ़ती जा रही हैं ।
सुख और दुःख के मूल दो कारण होते हैं-आन्तरिक और बाह्य । हवा . लग जाना, खान-पान में गड़बड़ हो जाना दुःख के बाह्य कारण हैं, असातावेदनीय कर्म का उदय होना अन्तरंग कारण है । दुःख की रोक-थाम के लिए जैसे बाहरी उपाय किये जाते हैं, उसी प्रकार आन्तरिक उपाय भी किये जाने चाहिए । यदि अन्तर के कारण को दूर कर दिया गया तो बाह्य कारण अपने आप ही दूर हो जायेगा।
युद्ध के वातावरण के रूप में देश पर जो संकट आया है, वह सामूहिक पाप का प्रतिफल है । सामूहिक कर्म के दृषित होने से करोड़ों लोगों के मन पर उसका असर पड़ रहा है । मोर्चे पर युद्ध करने वाले तो गिनती के सैनिक हैं परन्तु शासक, व्यवसायी, कृषक, मजदूर आदि सभी के मन में अशान्ति है, देश संकटग्रस्त है, अतएव सभी के चित्त पर दुःख की छाया होनी स्वाभाविक है । आक्रमण का मुकाबला करने का व्यवहारिक तरीका शक्ति से प्रतिरोध करना तो माना ही जाता है, किन्तु हमें आत्मपरीक्षण भी करना चाहिए कि हमारे भीतर कहीं गड़बड़ तो नहीं है ? पूर्वकाल में अकाल आदि संकट आने पर राजा लोग आत्म-शोधन करते थे । शासक अपनी त्रुटियों और स्खलनाओं का प्रतीकार करते थे। . . .
___ भारत को आज भी अपनी पुरानी संस्कृति से निर्वाह करना चाहिए । शासक वर्ग को आत्म-निरीक्षण करना चाहिए और अपनी त्रुटियों को तत्काल दूर कर