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आध्यात्मिक आलोक उस विश्व की जिसमें प्रत्येक मनुष्य दूसरों को अपना सखा समझता हो, कोई किसी को पीड़ा न पहुँचाता हो बल्कि परपीड़ा को अपनी ही पीड़ा मान कर उसके प्रतिकार के लिए सचेष्ट रहता हो, प्रत्येक व्यक्ति संयममय जीवन बना कर अपने सदगुणों के विकास में निरत रहता हो और अपनी-परायी मुक्ति के लिए यत्नशील हो । ऐसा विश्व कितना सुन्दर, कितना सुखद और कितना सुहावना होगा ! धर्म ऐसे ही विश्व के निर्माण की प्रेरणा युग-युग से देता आ रहा है।
धर्मशास्त्र शिक्षा देता है कि जिन वस्तुओं के लिए तू लड़ता है और दूसरों का अधिकार छीनता है, वे सारी वस्तुएँ नाशवान हैं । जो आज तेरे हाथ में है, उसका ही पता नहीं तो बलपूर्वक छीनी हुई परायी वस्तु कहाँ तक स्थायी रह सकेगी? जो दूसरे को सताएगा वह हत्यारा कहलाएगा और सदा भय से पीड़ित रहेगा | उसके चित्त में सदैव धुकपुक रहेगी कि दुश्मन मुझ पर कहीं हमला न कर दे ! कोई नया शत्रु पैदा न हो जाय । वह लड़कर और लड़ाई में विजयी होकर भी शान्ति से नहीं रह सकता | एक शत्रु को समाप्त करने के प्रयत्न में वह सैकड़ों नवीन शत्रु. खड़े कर लेगा । न स्वयं चैन से रह सकेगा और न दूसरों को चैन से रहने देगा। शत्रुता ऐसी पिशाचिनी है कि जो मर-मर कर भी पुनः पुनः जीवित होती रहती है और जिसका मूलोच्छेद कभी नहीं होता। इस कारण धर्मशास्त्र कहता है कि शान्ति और सुख का मार्ग यह नहीं है कि किसी को शत्रु समझो और उसको समाप्त करने का प्रयत्न करो; सच्या मार्ग यह है कि अपने मैत्रीभाव का विकास करो और इतना विकास करो कि कोई भी प्राणधारी उसके दायरे से बाहर न रह जाय । किसी को शत्रु न समझो और न दूसरों को ऐसा अवसर दो कि वे तुम्हें अपना शत्रु समझें ।
जो बात व्यक्तियों के लिए है वही समाज जाति व देशों के लिए भी समझना चाहिए । विस्मय का विषय है कि आज के युग में भी एक देश के सूत्रधार दूसरे देश के साथ युद्ध करने को तत्पर हो रहे है । पराधीन देश आज स्वाधीन होते जा रहे हैं, सदियों की राजनैतिक गुलामी खत्म हो रही है और साम्राज्यवाद अपनी अन्तिम घड़ियां गिन रहा है। ऐसी स्थिति में क्या अब यह संभव है कि कोई देश किसी अन्य देश की स्वाधीनता को समाप्त कर उस पर अधिक समय तक अपना प्रभुत्व कायम रख लेगा?
आज का युद्ध कितना महंगा पड़ता है, यह किसी से छिपा नहीं है । पूर्व-काल में सीमित तरीके से युद्ध होता था । उसमें सेना ही सेना के साथ लड़ती थी।
और उस लड़ाई में भी कतिपय सर्वसम्मत नियम होते थे । सर्वनाश के आज जैसे। साधन भी उस समय नहीं थे । मगर आज सैनिक और नागरिक सभी युद्ध की .