Book Title: Aadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Author(s): Hastimal Maharaj, Shashikant Jha
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 526
________________ - 518 . आध्यात्मिक आलोक . इंटरव्यू कहते हैं । इंटरव्यू में दस-पन्द्रह मिनट में ही पास-फेल होने का खेल समाप्त हो जाता है । उस समय क्या पूछा जाएगा, पता नहीं रहता । मगर प्रत्याशी अगर अभ्यासशील है और उस समय अपना मानसिक सन्तुलन कायम रखता है तो सफलता प्राप्त करता है । इसी प्रकार मरण के समय यदि मानसिक सन्तुलन रहा तो मुमुक्षु को सफलता प्राप्त होती है । यदि उस समय मोह-ममता जाग उठी तो अनुत्तीर्ण हो जायेगा । भगवान महावीर ने व्रताराधना के बाद आनन्द को मरणसुधार का उपाय बतलाया । मरणसुधार करने वालों को विकारों पर विजय प्राप्त करना आवश्यक है। उग्र से उग्र भय कष्ट आदि आने पर भी सावधान साधक ज्ञान बल द्वारा विकारों को उत्पन्न नहीं होने देता। विकारों के शमन के लिए अध्यात्मज्ञान की अनिवार्य आवश्यकता होती है । ऊंचे से ऊँचा अन्य ज्ञान प्राप्त करने वाले ने भी यदि अध्यात्मज्ञान प्राप्त नहीं किया तो सब व्यर्थ है ? विद्वान् पुरुष से यदि बोलते समय स्खलना हो जाय तो उसका उपहास नहीं करना चाहिए, क्योंकि प्रत्येक छद्मस्थ स्खलना का पात्र है। स्थूलभद्र ने आचार्य भद्रबाहु से दस पूर्वो का ज्ञान प्राप्त कर लिया किन्तु अपने प्रभाव को प्रदर्शित करने के लिए साध्वियों के समक्ष सिंह का रूप धारण किया। इस घटना को जानकर आचार्य भद्रबाहु को खेद हुआ और उन्होंने आगे का अभ्यास कराना बन्द कर दिया । अहंभाव आने पर आगे की साधना के समक्ष दीवार खड़ी हो जाती है। आचार्य भविष्य का विचार करके चौकन्ने हो गए। उन्होंने सोचा-इस गहरे पात्र में भी जब छलकन आ गई तो इससे अधिक का समावेश इसमें कैसे हो सकेगा? अब अभ्यास को रोक देना ही उचित है । आचार्य ने यह निर्णय कर लिया । ज्ञानी पुरुष अपनी भूल को जल्दी समझ लेता है, स्वीकार कर लेता है और उसका प्रतीकार करने में विलम्ब भी नहीं करता। एक घुड़सवार घोड़े से गिर पड़ा । किसी ने उससे कहा-क्या भाई, गिर. पड़े ? उसने लजाते हुए कहा-नहीं, कहां गिरा हूँ। उसका पांव तो पायदान में लटक रहा था, तथापि उपहास के भय से उसने प्रत्यक्ष गिरने को भी स्वीकार नहीं किया। . .भूल होना कोई असाधारण बात नहीं । प्रत्येक छदमस्थ प्राणी से कभी न कभी भूल हो ही जाती है । मगर उस भूल को स्वीकार न करना और छिपाने का

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